Tuesday 20 November 2012

सीने की चोट हो सकती है जानलेवा ( Chest Injuries )

सड़क हादसों और अन्य दुर्घटनाओं के बढ़ने के कारण इन दिनों सीने में चोट के मामले तेजी से बढ़त पर हैं। ऐसे मामले उस वक्त काफी गभीर हो जाते हैं, जब हादसों के कारण फेफड़े विकारग्रस्त हो जाते हैं। अगर ऐसी चोटों से ग्रस्त लोगों का शीघ्र ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में इलाज कराया जाए, तो इन मामलों में अधिकतर रोगियों की जान बचायी जा सकती है..

आधुनिक युग में सड़कों पर वाहनों का अत्यधिक जमाव और वाहन चलाते वक्त लापरवाही बरतने से सीने या छाती की चोटों की सख्या में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा ज्यादातर अस्पतालों में छाती चोट के सही इलाज की सुविधा का अभाव होना ऐसी चोट से घायल व्यक्ति की जान जाने का कारण बन जाता है। सच तो यह है कि छाती की चोटों में लगभग 75 प्रतिशत लोगों की जान बचायी जा सकती है, पर घायल व्यक्ति के रिश्तेदारों की अज्ञानता व छाती चोट को लेकर उनकी समझ छाती चोट से घायल व्यक्ति को मौत के मुंह में धकेल देती है।

चोट की गभीरता को समझें

लोग यह नहीं समझते कि छाती चोट में पसली टूटने पर छाती के अंदर स्थित फेफड़ा भी जख्मी हो जाता है जख्मी फेफड़े के मामले में इलाज की लापरवाही से जानलेवा जटिलताएं उत्पन्न हो जाती है और घायल व्यक्ति की जान जाने में देर नहीं लगती। अक्सर होता यह है कि पसली के फ्रैक्चर व उसमें होने वाले दर्द पर सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया जाता है और उसी का इलाज चलता रहता है और घायल फेफडे़ को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसलिए घायल व्यक्ति के परिजनों को चाहिए कि छाती की चोट लगने पर उसे गभीरता से लें और शुरुआती दिनों में ही किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन की निगरानी में इलाज कराएं।

चोट लगने पर क्या करे

परिवार वालों को चाहिए कि समय व्यर्थ किये बगैर वे पीड़ित व्यक्ति को बड़े शहरों के अस्पतालों में ले जायें जहा पर एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन यानी चेस्ट सर्जन और क्रिटिकल केयर विभाग की उपलब्धता हो। लोग अक्सर ऐसी परिस्थितियों में रोगियों को छोटे प्राथमिक सेवा केन्द्रों व छोटे अस्पतालों में ले जाते है और वहा प्राथमिक उपचार दिलवाने का प्रयास करते है और इन सब में कीमती वक्त नष्ट हो जाता है।

इलाज न कराएं तो क्या होगा

छाती चोट में फेफड़े के जख्मी होने से छाती के अंदर हवा भर जाती है,जो फेफड़े को दबा देती है। इस कारण फेफड़ा फूल नहीं पाता जिससे मरीज की सास फूलने लगती है और इलाज के बगैर रोगी की मौत हो जाती है। इसके अलावा हवा के साथ-साथ छाती के अंदर फेफड़े के चारों ओर रक्त का जमाव हो जाता है और फेफड़ा दबाव के कारण पूरा फूल नहीं पाता। इस स्थिति में तब मरीज की हालत बिगड़ने लगती है और सही इलाज के अभाव में उसकी मौत हो जाती है। छाती में खून भर जाने से एक तो शरीर में रक्त की मात्रा कम हो जाती है तो दूसरी तरफ फेफड़े के सही काम न करने के कारण रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।

इलाज की प्रक्रिया

छाती चोट के अधिकतर मामलों में छाती में नली डालकर उसके अंदर एकत्र हुआ रक्त व हवा निकाल दी जाती है। नतीजतन फेफड़े पर दबाव कम होने लगता है और वह धीरे-धीरे फूलना शुरू कर देता है। अगर फेफड़ा ज्यादा जख्मी नहीं है, तो वह अपनी पूर्व स्थिति में पुन: लौटने में एक हफ्ते से ज्यादा समय नहीं लगायेगा। अगर फेफड़ा क्षतविक्षत हो चुका है तो सर्जरी की जरूरत पड़ जाती है। नष्ट हुए फेफड़े के भाग को निकालना पड़ता है। कभी-कभी छाती व पेट के बीच स्थित दीवार छाती चोट से फट जाती है, जिसके परिणामस्वरूप आतें, छाती में प्रवेश कर जाती है और फेफड़े को दबा देती है। यह स्थिति बड़ी भयावह होती है। इसमें तुरन्त ऑपरेशन की आवश्यकता होती है। कभी-कभी छाती चोट में अगर अनियत्रित रूप से रक्तस्राव होता है, तो तुरन्त सीने की सर्जरी कर इस पर नियत्रण करना पड़ता है।




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