Saturday 29 December 2012

एलोवेरा बनेगा किडनी का सुरक्षा कवच


वनस्पतियों में छिपे औषधीय गुणधर्म हजारों साल से जीवन को संजीवनी देते रहे हैं, लेकिन उनके अनुसंधान पर परिणामी काम नहीं हुआ। अंग्रेजी दवाओं की भेंट चढ़ती जिंदगी में फिर से जान फूंकने के लिए चिकित्सा जगत आयुर्वेद की शरण में खड़ा हैं। लाला लाजपत राय मेडिकल कॉलेज के फार्मोकोलोजी विभाग में गिलोय के बाद अब एलोवेरा पर चल रहे एक शोध में इसे किडनी रोगों पर अत्यंत लाभकारी पाया गया है।

चरक संहिता में भी एलोवेरा को औषधीय गुणों से लवरेज बताया गया है, किंतु वैज्ञानिक शोध पर आधारित पुष्टि की कमी रही। फार्मोकोलोजी विभाग की एमडी की छात्रा डॉ. शालिनी वीरानी ने चूहों पर किए गए एक शोध में पाया कि एलोवेरा के सेवन से एक माह में उनकी किडनी पूरी तरह ठीक हो गई।

इसके लिए चूहों को दो ग्रुप में बाटा गया। पहले ग्रुप में स्वस्थ चूहे, जबकि दूसरे में किडनी के रोगी चूहे रखे गए। स्वस्थ चूहों को लगातार एलोवेरा का डोज दिया गया, जिसके बाद उनमें किडनी रोग का संक्त्रमण नहीं लगा। जिन चूहों की किडनी फेल की गई थी, उन्हें एक माह तक एलोवेरा की खुराक ने पूरी तरह ठीक कर दिया। एलोवेरा की खुराक से चूहों के लीवर की क्षमता भी बढ़ी मिली।

महंगी डायलिसिस से मिलेगी निजात

किडनी रोगियों की संख्या बढ़ने से चिकित्सा के समक्ष एक कठिन चुनौती है। एलोपैथिक में किडनी रोगियों को डायलिसिस पर रखा जाता है, जो महंगा होने के साथ-साथ साइड इफेक्ट भी करता है। एलोवेरा से किडनी रोगों में चमत्कारिक सुधार के संकेत से अब विभाग ट्रायल का दूसरा चरण शुरू करेगा। बाद में इसके पेटेंट के लिए आवेदन किया जाएगा। 



Wednesday 26 December 2012

कैसे जियें डायबिटीज के साथ


डायबिटीज आधुनिक जीवन शैली ऐसी देन है जिससे पीछा छुडाना बहुत मुश्किल रहता है, पर यदि आप सतर्क हो जाए तो डायबिटिज के साथ भी स्वस्थ रह सकते हैं। डायबिटीज को पूर्ण रूप से दूर नहीं कर सकते, लेकिन नियंत्रण में रखकर स्वस्थ एवं सामान्य जीवन बीता सकते है। जैसे ही आप को डायबिटिज के लक्षण दिखें तुरन्त अपनें सारे टेस्ट करवाएं, और इस पर नियंत्रण के लिए नियमित संतुलित आहार, व्यायाम और जरूरी सावधानियां लें। ताकि बीमारी बढ़ने से पहले ही कन्टोल कर ली जाएं। आइए हम आपको बताते है किन उपायों को अपनाकर आप भी डायबि‍टीज के साथ अच्छे से जी सकते है।

डायबि‍टीज के साथ स्वस्थ रहने के उपाय

  • अगर आपका वजन बढ़ा हुआ है तो सबसे पहले उसे नियंत्रित करें क्योंकि ज्यादा वजन डायबि‍टीज का सबसे बड़ा दुश्मन है।
  • रोजाना सुबह की आधे घंटे की वॉक, साइकलिंग, सीढ़ियों का प्रयोग, योग और एरोबिक्स आदि डायबिटीज को कन्टोल करने में सहायक हैं। इसे अपनी दिनचर्या में शमिल करें।
  • बिस्क-वाक नियमित करें ताकि आपकी मांसपेशियां इंसुलिन पैदा कर सकें और ग्लूकोस को पूरा एब्जार्ब कर सकें।
  • तनाव को अपने से दूर रखें।
  • ब्लडशुगर का लेवल अगर प्राकृतिक तरीके से या खानपान से कंट्रोल नहीं होता तो दवा का सहारा लें। समय-समय पर अपना चेकअप कराने में बिल्कुल भी लापरवाही न बरतें।
  • डायबिटीज होने पर डाइट चार्ट को फॉलो करें, हैल्दी लाइफ स्टाइल अपनाएं और अपने खानपान पर पूरा ध्यान दें।  
  • रेशायुक्त खाद्य पदार्थों की मात्रा अपने भोजन मे बढाए, जैसे ब्राउन राइस, चोकरयुक्त रोटी, ब्राउन ब्रेड आदि।
  • तली हुई चीजों का सेवन न करें, कम से कम वेजीटेबल ऑयल का प्रयोग करें। अपनी डाइट में चावल का सेवन कम और नट्स का प्रयोग नियमित रूप से करें।
  • नियमित रूप से भारतीय हर्बस जैसे मेथीदाना, करेला, नीम का पाउडर एटीआक्सीडेंट आंवले का सेवन किसी भी रूप में करें।
  • अगर आप इंसुलिन ले रहे हैं तो एक छोटा कप टोंड दूध (बिना चीनी के) रात में नियमित रूप से लें।
  • अगर थोड़ी-थोड़ी देर पर खाना नहीं लेते तो हाइपोग्लाइसेमिया होने की आशंका काफी बढ़ जाती है जिसमें शुगर 70 से भी कम हो जाती है।
  • खाना लगभग हर कुछ घंटे बाद लेते रहें। दिन भर में तीन बार खाने के बजाय थोड़ा-थोड़ा पॉच-छह बार खाएं। खाने में फाइबर ज्यादा ले।
  • सेब, संतरा, नाशपाती में से कोई भी फल लें। ध्यान रहे, मीठे फल यानी आम, केला, चीकू, अंगूर और लीची से परहेज करें।
  • स्मोकिंग से परहेज करें, स्मोकिंग करने वाले डायबिटीज रोगियों में हार्ट अटैक के 50 पर्सेंट चांस अधिक होते हैं क्योकि स्मोकिंग से रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचता है।


इन सब उपायों को अपनाकर डायबि‍टीज रोगी डायबिटीज के साथ भी स्वस्थ जीवन जी सकते है।




Sunday 23 December 2012

सर्दी जुकाम से बचाव


आपकी जीवनशैली और आदतें कैसी भी हों कामन कोल्ड बहुत ही आम होने के कारण किसी भी मौसम में हो सकता है। इसलिए यह जानकारी थोड़ी अनोखी है कि कामन कोल्ड से निज़ात पाने का कोई शार्ट कट नहीं है चाहे आप कितनी भी दवाइयां या वैक्सीन लें।

कामन कोल्ड का संक्रमण थोड़ा डरावना होता है और इसके लक्षण जैसे खांसी, बुखार , सर्दी आपको दवाएं लेने के लिए प्रेरित करते हैं।

यह ध्यान देने योग्य बात है कि अगर आप कोई वैक्सीन नहीं ले रहे हैं तो आपको कामन कोल्ड के लक्षणों से बचना चाहिए। कामन कोल्ड से बचने के कुछ तरीके:

कामनकोल्ड से रोकथाम

हम सभी जानते हैं कि कामन कोल्ड संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है और इसलिए ऐसे में हाथ धोना बहुत ज़रूरी है। समय समय पर हाथ धोना इसलिए भी ज़रूरी हो जाता है क्योंकि कामन कोल्ड से संक्रमित व्यक्ति के हाथों में अकसर वायरस चिपक जाते है जो फिर टेलिफोन, डेस्क, सेलफोन या डोरबेल पर चिपक जाते हैं। ऐसे कीटाणु स्वचालित तरीके से किसी दूसरे व्यक्ति में फैल सकते हैं।

पर्याप्त मात्रा में पेय लें:

कोल्ड जैसी परेशानी के समय पानी पीना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन पर्याप्त मात्रा में पानी पीने की कोशिश करें। विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि पानी से हमारा शरीर साफ हो जाता है और शरीर में मौजूद टाक्सिन निकल जाते हैं और रिहाइड्रेशन की क्रीया होती है ा चाय, काफी और सूप जैसे गरम आहार लेने से भी कोल्ड जैसी बीमारी से राहत मिलती है।

साफ और ताज़ा वायु लेना ज़रूरी है:

कामन कोल्ड से ग्रसित व्यक्ति के लिए घर की चारदीवारी के अंदर रहना समझदारी की बात है। लेकिन ऐसे में लोग यह भूल जाते हैं कि इस तरीके से कमरे के अंदर का नम माहौल कीटाणु के लिए स्टोरहाउस जैसा काम करता है। व्यक्ति को प्रतिदिन ताज़ी हवा लेना ज़रूरी होता है।

पेपेर की तौलिया का इस्तेमाल:

ऐसी सलाह दी जाती है कि हाथों को साफ करने के लिए किचन और बाथरूम में पेपर की तौलिया का इस्तेमाल करना चाहिए। घर में प्रत्येक सदस्य की अलग तौलिया होनी चाहिए जिससे कि कीटाणु ना फैलें।

बहुत ज़्यादा शराब पीने से प्रतीरक्षा प्रणाली का ह्रास:

विशेषज्ञ ऐसी सलाह देते हैं कि व्यक्ति को एक सीमित मात्रा मेंअल्कोहल का सेवन करना चाहिए क्योंकि इससे संक्रमण होने का अधिक खतरा रहता है। अल्कोहल शरीर में शुष्की पैदा करता है और इससे जर्मस आसानी से बढ़ जाते हैं।

अपने चेहरे को बार बार ना छूएं:

कोल्ड होने पर अपने चेहरे, नाक और मुंह को बार बार ना छूएं, क्‍योंकि ऐसे में अगर आपके आसपास किसी को कोल्ड हुआ हो तो आपको भी कोल्ड होने की सम्भावना बढ़ जाती है।

फाइटोकेमिकल्स फ्लू और कोल्ड से लड़ने में प्रभावी:

व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में कच्चे फल और सब्ज़ियां खानी चाहिए क्योंकि यह शरीर की प्रतीरक्षा प्रणाली के लिए अच्छे होते हैं। इसमें गहरे हरे, पीले और लाल रंग की सब्ज़ियां आती हैं जो कि हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को साफ करती हैं।

Friday 21 December 2012

समय रहते संभव है उपचार ब्रेन टयूमर


मस्तिष्क हमारे शरीर का वह महत्वपूर्ण और नाजुक हिस्सा है, जिसका संबंध संपूर्ण शरीर से है। अगर मस्तिष्क के किसी भी हिस्से में कोई तकलीफ हो तो उसका प्रभाव शरीर के दूसरे अंगों की गतिविधियों पर भी पड़ता है।  
आज के दौर में महानगरों में रहने वाले ज्यादातर लोग अति व्यस्तता की वजह से मानसिक तनाव और अवसाद के शिकार हो रहे हैं। साथ ही, आजकल ब्रेन टयूमर जैसी गंभीर बीमारियों के मामले भी देखने में आ रहे हैं। अत: सिरदर्द, चक्कर आना, आंखों के आगे अंधेरा छा जाना, जैसी समस्याओं को मामूली समझ कर अनदेखा करने के बजाय गंभीरता से लेना चाहिए। 
         
क्यों होता है ब्रेन ट्यूमर 

ब्रेन टयूमर क्यों होता है? इसकी वजह अभी तक पता नहीं चली है। तमाम खोजों और अध्ययनों के बाद भी यह हैरानी की बात है कि देश-विदेश के चिकित्सक अभी कोई पुख्ता वजह नहीं ढूंढ पाए हैं कि ब्रेन टयूमर क्यों होता है क्योंकि इसके होने की वजह ठोस रूप से सामने नहीं आई है। इसलिए इससे बचाव के उपाय बताने भी कठिन हैं। इस संबंध में दिल्ली स्थित विद्यासागर इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में गामा नाइफ विशेषज्ञ डॉ. महीप सिंह गौड़ कहते हैं, 'सिर में किसी भी तरह की तकलीफ या मस्तिष्क से जुड़ी किसी समस्या का आभास होने पर तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करें। बीमारी सही समय पर पकड़ में आए तभी निदान आसान हो पाता है।'

मस्तिष्क में मुख्यत: दो प्रकार के टयूमर होते हैं- पहला है बिनाइन टयूमर जो धीरे-धीरे बढ़ता है और दूसरा मेलिगेंट टयूमर, जो कैंसर युक्त होता है। पहले तरह के टयूमर कुछ दवाओं से नियंत्रित हो जाते हैं और जो दवाओं से ठीक नहीं हो पाते उन्हें ओपन सर्जरी और गामा नाइफ सर्जरी से ठीक करने की कोशिश की जाती है परंतु कैंसर युक्त टयूमर पूर्णतया ठीक होते हैं। टयूमर दिमाग में किस जगह पर है सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यही बात है। डॉ. गौड़ का कहना है कि मस्तिष्क मानव शरीर का सबसे संवेदनशील भाग है। टयूमर उसमें कहां है किस नस को छू रहा है। किस हिस्से पर उसका कितना प्रभाव है, यह बात अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसी पर आधारित होकर मरीज का इलाज किया जाता है। सबको एक जैसा उपचार नहीं दिया जाता उपचार रोग की जटिलता पर निर्भर करता है। कभी-कभी कुछ टयूमर ऐसे होते हैं जहां तुरंत सर्जरी (शल्य चिकित्सा) कर बाद में गामा नाइफ सर्जरी भी करनी पड़ती है। 

ब्रेन टयूमर के लक्षण 


  • अभी तक ब्रेन ट्यूमर के कारणों का सही-सही पता नहीं चल पाया है। पर चिकित्सकों के अनुसार नीचे बताए गए लक्षणों में से अगर कोई भी लक्षण आपको दिखाई दे, तो तुरंत किसी न्यूरो सर्जन से संपर्क करें।
  • कभी-कभी मिरगी के दौरे के सामान दौरा पड़ता हो या बेहोशी आती हो। 
  • सिर में असहनीय दर्द होता हो। 
  • हाथ-पैरों में ऐंठन हो। 
  • ज्यादा कमजोरी का एहसास हो। 
  • सुबह के समय सिर में अक्सर दर्द होता हो। 
  • दृष्टि का अचानक कम होना या कलर ब्लांइडनेस। 


अब आसान है निदान 

दिल्ली स्थित विद्यासागर इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में गामा नाइफ विशेषज्ञ डॉ. महीप सिंह गौड़ का मानना कहते हैं, 'इस तरह के मामले ज्यादा सामने आने की मुख्य वजह है कि अब पहले की तुलना में परीक्षण आसान होने लगा है। कैट स्कैन और एमआरआई समय पर कराने से रोग सामने आने लगा है। पहले यह जांच और परीक्षण बड़े-बड़े शहरों और उनमें भी मुख्य अस्पतालों तक सीमित थे। आज उनका क्षेत्र व्यापक हुआ है। पहले तकलीफ होने पर दूर जाने और महंगे उपचार के डर से लोग कतराते थे चिकित्सक भी अपनी साख को बनाए रखने के लिए जल्दी महंगे टेस्ट कराने की सलाह नहीं देते थे। परंतु आज दिमाग से संबंधित किसी भी रोग का अंदेशा भर होने से चिकित्सक तुरंत विस्तृत जांच कराता है। डॉ. गौड़ का मानना है कि यही वजह है कि पहले जो बीमारी अपने विकराल रूप में सामने आती थी, अब वही छोटे रूप में ही सामने आ जाती है। इसीलिए इलाज पहले से ज्यादा आसान हो गया है। 




Monday 17 December 2012

रक्त से स्टेम सेल बनाने की तकनीक खोजी


अब मरीज के गंभीर रोगों का इलाज उसी के खून से संभव हो सकेगा। यह कामयाबी मिलेगी रक्त को स्टेम सेल के रूप में विकसित करने की तकनीक से जिसे कैंब्रिज विश्‌र्र्वविद्यालय में कार्यरत गोरखपुर की बेटी इंबिशात गेती ने खोज निकाला है। रक्त से बनी कोशिकाओं का प्रयोग कर हृदय, दिमाग, आख, अस्थि आदि अंगों की बीमारियों का इलाज हो सकेगा।

गेती का शोध दुनिया के जाने-माने जर्नल स्टेम सेल्स ट्रास्लेशनल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। शोध में रक्त से बनी स्टेम सेल्स का प्रयोग रक्त वाहिनिया बनाने में किया गया है। चिकित्सा विज्ञान में इसे बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा जा रहा है। इंबिशात के मुताबिक इन स्टेम सेल्स की खासियत यह है कि वे अपने को शरीर के किसी भी अंग की कोशिकाओं के रूप में विकसित कर सकती हैं। इसी विशेषता के कारण ये हृदय, दिमाग, किडनी, नेत्र सहित किसी भी अंग की बीमारियों का इलाज करने में सक्षम हैं। शोध के समय गेती ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि ये कोशिकाएं एक ऐसे रिपेयर सेल के रूप में काम करें जो रक्त के जरिये पहुंचकर रक्त वाहिनियों की मरम्मत कर सकें। इस शोध निष्कर्ष के बाद उन्हें स्टेम सेल के तौर पर विकसित किया गया है।

इंबिसात गेती ने बताया कि स्टेम सेल बनाने का सबसे आसान व सुलभ स्त्रोत मरीज का रक्त है। हमने इस तकनीक को आसान, सस्ता व जल्द पूरा होने वाला बनाने की कोशिश की है। इंबिशात ने गोरखपुर विश्‌र्र्वविद्यालय से बीएससी और बैंगलोर से एमएससी किया। इसके बाद कैंब्रिज विश्‌र्र्वविद्यालय ज्वाइन कर शोध कार्य शुरू किया। उनका शोध पत्र हाल ही में प्रकाशित हुआ है। शोध में 11 लोगों ने उनका सहयोग किया है। स्टेम सेल खुद को शरीर के किसी भी अंग की कोशिकाओं के रूप में विकसित कर सकती हैं। नए सेल्स का निर्माण भी कर सकती हैं।

कैसे बेहतर नई तकनीक

-स्टेम सेल्स कई तरह के होते हैं। इपिथियल स्टेम सेल्स त्वचा कोशिकाओं के रूप में विकसित किए जा सकते हैं।

-न्यूरो स्टेम सेल्स न्यूरो संबंधित रोगों के इलाज में कारगर हैं, पर यह दोनों स्टेम सेल्स सिर्फ उसी अंग के इलाज में कारगर हैं जहा से निकाले गए हैं।

-बड़ी उम्र के लोगों के अंगों से स्टेम सेल्स तैयार करने में दिक्कत है कि उन्हें अलग करना आसान नहीं होता, क्योंकि वे सीमित मात्रा में होते हैं।

-भ्रूण से बने स्टेम सेल्स हर तरह की कोशिकाएं बना सकते हैं लेकिन इससे इलाज में कई दिक्कतें भी हैं।

-भ्रूण हत्या से जुड़ी होने के कारण यह तकनीक विवादित है। साथ ही ऐसी कोशिकाओं को शरीर आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता, जैसी दिक्कत अंग प्रत्यारोपण में आती है।

-स्टेम सेल का एक दूसरा जरिया मानव त्वचा है। इसे भी शरीर स्वीकार कर सकता है, पर त्वचा या अन्य अंगों से निकाली कोशिकाओं के लिए बायोप्सी करनी पड़ती हैं।

-ये सभी तरीके कठिन होने के साथ ही खर्चीले व अधिक समय लेने वाले हैं। रक्त से तैयार स्टेम सेल्स निकालने का तरीका आसान, कम खर्चीला व कारगर है। 

Friday 14 December 2012

हृदयाघात के लक्षण (Heart Attack)


हृदय एक महत्वपूर्ण अंग है जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त संचार करता है। हृदय,रक्त-धमनियों से ऑक्सीजन युक्त रक्त प्राप्त करता है, जिन्हें कोरोनरी आर्टरीज कहा जाता है,यदि इन रक्त धमनियों में रुकावट आ जाती है, तो हृदय की मांसपेशियों को रक्त नहीं मिल पाता है वे काम करना बंद कर देती है, इसे हृदयाघात कहते हैं। 

हृदयाघात की गम्भीरता हृदय की मांसपेशियों को नुकसान की मात्रा पर निर्भर करती है। मृत मांसपेशी, पम्पिंग प्रभाव को कमज़ोर कर हृदय के कार्य पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है, जिससे कंजेस्टिव हार्ट फेल्यर होता है। यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें पीड़ित व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई महसूस होती है एवं उसके पैरों में पसीना आने लगता है।

हृदयाघात का सबसे सामान्य लक्षण है-छाती में दर्द, जिसमें प्रायः लगता है कि कोई कसकर छाती को दबा रहा है या यहां कुछ भारीपन महसूस होता है, कभी-कभी चुभन या जलन जैसा दर्द भी हो सकता है।

हालांकि यह दर्द कभी भी हो सकता है, बहुत सारे रोगियों को यह सुबह के समय, जगने के कुछ घंटे के भीतर महसूस होता है। छाती का दर्द या तो छाती के बीचोबीच या पसली-पंजर के केंद्र के ठीक नीचे महसूस होता है, औऱ बांह, पेट, गला औऱ निचले जबड़े तक फैल सकता है।

दूसरे लक्षण हैं-कमजोरी, पसीना आना, जी मिचलाना, उल्टी आना, सांस लेने में तकलीफ, चेतना में कमी, धड़कनें तेज होना, सोचने-समझने की क्षमता में कमी आदि हैं। कई बार हृदयाघात के कारण छाती में जलन, जी मिचलाने और उल्टियां आने पर रोगी इसे अपच की समस्या समझ लेते हैं।

Thursday 13 December 2012

बच्चों को भी हो सकता है अस्‍थमा


बच्चों में अस्‍थमा का मुख्‍य कारण दूषित वातावरण है। इसके साथ ही कुछ मांएं अपने बच्‍चों को स्‍तनपान नहीं करवाती हैं, जिसका असर बच्‍चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता और उसकी सेहत पर पड़ता है। जिससे वे अस्थमा सहित कई दूसरी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं।

अस्थमा श्वास संबंधी रोग है। इसमें श्वास नलिकाओं में सूजन आने से वे सिकुड़ जाती हैं, जिससे सांस लेने में तकलीफ होती है। अस्थमा का अटैक आने पर श्वास नलिकाएं पूरी तरह बंद हो सकती हैं, जिससे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद हो सकती है।

अस्थमा के कारण 

एलर्जी- एलर्जी और अस्थमा का गहरा संबंध होता है। कुछ बच्‍चे पर्दे, गलीचे, कार्पेट, धुएं, रूई के बारीक रेशे, ऊनी कपड़े, फूलों के पराग, जानवरों के बाल, फफूंद और कॉकरोच जैसे कीड़े के प्रति एलर्जिक होते हैं।

मोटापा- मोटापा भी अस्थमा का एक बड़ा कारण है। बच्‍चों का अधिक वजन फेफड़ों पर अधिक दबाव डालता है जिससे अस्थमा की आशंका बढ़ जाती है।

वायु प्रदूषण- प्रदूषण की वजह से अस्थमा की समस्या लगातार बढ़ रही है।

स्मोकिंग- सिगरेट के धुएं से भरे माहौल में रहने वाले शिशुओं को अस्थमा होने का खतरा होता है। यदि प्रेग्‍नेंसी के दौरान कोई स्‍त्री सिगरेट के धुएं के बीच रहती है, तो उसके बच्चे को अस्थमा होने का खतरा होता है।

मौसम का बदलाव- तापमान में बदलाव से एलर्जी के मामले बढ़ते हैं। ज्यादा गर्म और नम वातावरण में अस्‍‍थमा के फैलने की सम्भावना अधिक होती है। ठंडी हवा से भी अस्थमा का दौरा पड़ सकता है।

आनुवांशिक- आमतौर पर अस्थमा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता है। जब माता-पिता दोनों को अस्थमा होता है, तो उनके बच्चों को भी अस्थमा होने की संभावना अधिक रहती है।


अस्थमा के लक्षण
दिल की धड़कन का बढऩा
अक्सर सर्दी-जुकाम या खांसी का होना
रात में और सुबह कफ की शिकायत होना    
सांस लेने में परेशानी, बेचैनी
खेलने और एक्सरसाइज के दौरान जल्दी थकना व सांस फूलना   
सीने में जकडऩ व दर्द की शिकायत
सांस लेने पर घरघराहट जैसी आवाज आना

अपनाएं ये परहेज

अस्थमा होने पर बच्‍चों को कुछ बातों का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि वे सामान्य जिंदगी व्यतीत कर सकें।

एलर्जी के कारणों से रहें दूर- जिन चीजों से एलर्जी हो उनसे दूर रहें, जैसे कुछ बच्‍चो को पुरानी किताबों की गंध, परफ्यूम, अगरबत्ती, धूप, कॉकरोच, पालतू जानवरों आदि से एलर्जी होती है। 

उचित खान-पान- अस्थमा की वजह गलत खानपान भी है। तला हुआ खाना अस्थमा को बढ़ाता है। जंक फूड न खाएं इससे एलर्जिक अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है। गाजर, शिमला मिर्च, पालक और दूसरे गहरे रंग के फलों और सब्जियों को डाइट में शामिल करें, क्योंकि इनमें बीटा कैरोटीन होता है।

मौसम में परेशानी - अगर आपके बच्‍चे को मौसमी परेशानी हो तो उसे मौसम के शुरू होने से पहले डॉक्टर की सलाह से प्रिवैंटिव इनहेलर दे सकते हैं।

लेट नाइट खाना न खिलाए - रात को देर से खाना खाकर सो जाने से अस्थमैटिक बच्‍चों के लिए नुक्सान होता है। इसलिए बच्‍चों को सोने से कम से कम 2 घंटे पहले डिनर करवा दें।



Tuesday 11 December 2012

कैंसर की शुरूआती अवस्था


कैंसर को बहुत ही खतरनाक रोग माना जाता है, क्योंकि ज्यादातर मामलों में यह मरीज की जान ले लेता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि इसका पता बहुत देर से लगता है। इसलिए अगर इस रोग की शुरूआती अवस्था में हीं इसका इलाज शुरू कर दिया जाये तो मरीज की जान बचाई जा सकती है। आज के ज़माने में मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि अब बहुत से कैंसर के मरीजो की जान बचा ली जाती है। इसलिए इस जानलेवा रोग से अब घबराने कि जरूरत नहीं है लेकिन इसकी शुरूआती अवस्था के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता जरूर है। 

आम तौर पर साधारण इंसान सिर्फ स्तन कैंसर, फेफड़ों का कैंसर, ब्रेन कैंसर, हड्डियों का कैंसर, ब्लड कैंसर इत्यादि के बारे में जानता है। जबकि कैंसर सौ से भी ज्यादा प्रकार के हो सकते हैं। इसलिए विभिन्न प्रकार के कैंसर की शुरूआती अवस्था एक दूसरे से भिन्न होती है।

कैंसर का प्रथम चरण यानि प्राम्भिक अस्वस्था

कैंसर के प्रथम चरण को प्रारंभिक अवस्था भी कहा जाता है। प्रथम चरण को उप चरण जैसे 1 ए  और 1 बी में भी बांटा  जा सकता है। 1 ए की अवस्था में आम तौर पर घातक  ऊतक आकार में 2 से 3 सेमी से अधिक नहीं होते हैं और अपने मूल अंग के भीतर ही भीतर निहित रहते है।

लेकिन जैसे जैसे यह रोग बढ़ता है यानि 1 बी की अवस्था में पहुँचता है तो कैंसर कोशिकाओं के आकार में बृद्धि होने लगती है जो इस अवस्था में भी मूल अंग के साथ हीं निहित रहता है लेकिन कुछ मामलों में इसका मेटास्टेसिस होना यानी दूसरे अंगों तक फैलना या दूसरे  अंगों तक पहुंचना भी संभव होता है। यदि मेटास्टेसिस होता है, तो इसका मतलब है कि कैंसर दूसरे अंगों तक फैल रहा है।

ऐसी अवस्था में सर्जरी शायद एक उपयुक्त उपचार माना जाता है। इस प्रकार की सर्जरी में पीड़ित अंग के खास हिस्से को रिसेक्स्न नामक प्रक्रिया के माध्यम से निकाल दिया जाता है।  लेकिन आप बाहरी बीम विकिरण चिकित्सा या कीमोथेरपी की सहायता से भी कैंसर की वृद्धि को रोक सकते हैं अथवा कैंसर कोशिकाओं को ख़त्म कर सकते हैं।

अगर उपरोक्त सारे उपचार अप्रभावी साबित हों तो आप एक नैदानिक परीक्षण का सहारा ले सकते हैं जिसमें  शल्य चिकित्सा, विकिरण या रसायन चिकित्सा के विभिन्न संयोजन शामिल होते हैं यानि एक साथ  कई उपाय अपनाये जा सकते हैं।   

कैंसर का दूसरा चरण

जब हम कैंसर की माध्यमिक स्तर की चर्चा करते हैं तब इसका मतलब  होता है कि हम आम तौर पर कैंसर के दूसरे चरण की चर्चा कर रहे हैं। यह चरण भी  सामान्यतः 2 ए और 2 बी के उप - चरणों में बंटा हुआ रहता है।  स्टेज 2 ए में, घातक ऊतक आकार में 2 से 3 सेमी होते हैं और इसके असामान्य कोशिकाएं पड़ोसी लिम्फ नोड्स यानि अपने आसपास के अंगों में मेटासिस हुए रहते हैं। जब कैंसर आगे 2 बी  चरण की ओर प्रगति करने लगता है तो इस अवस्था में भी लिम्फ नोड्स प्रभावित हुए रहते हैं लेकिन आप पाएंगे कि कैंसर का मेटासिस भी होने लगा है यानि कैंसर कोशिकाएं दूसरे अंगो तक भी पहुँचने लगे हैं।

इस चरण में भी कैंसर के पहले चरण वाली चिकित्सा हीं उपयोग में लाई जाती है मसलन सर्जरी के जरिये हानिकारक उत्तकों को निकालना या बाहरी विकिरण की चिकित्सा प्रदान करना ताकि कैंसर के गांठ को कम किया जाये या बढ़ने से रोका जा सके या उसके कुछ भाग को नष्ट किया जा सके या केमोथेरपी के जरिये कैंसरस कोशिकाओं को फैलने से रोका जा सके। आम तौर पर  पहले सर्जरी की जाती है उसके बाद केमोथेरपी या विकिरण चिकित्सा दी जाती है।

कैंसर का ज्ञात कैसे किया जाता है

बायोप्सी के द्वारा भी कैंसर का ज्ञात किया जाता है। इसमें कैंसर के एक छोटे  भाग को निकालकर उसका परीक्षण किया जाता है। गाँठ छोटी होने पर पूरी गाँठ हीं निकाल  ली जाती है लेकिन गाँठ बड़ी होने पर उसका थोडा भाग हीं निकाला जाता है ताकि परिक्षण किया जा सके। मेमोग्राम के जरिये भी आप कैंसर का पता लगा सकते हैं। एम् आर आई भी ब्रेन ट्यूमर का पता लगाने में काफी कारगर सिद्ध होता है। 
कैंसर से घबराएं नहीं; कैंसर के लक्षण को पहचाने तथा सही समय पर सही उपचार लें।



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Industrial Gas : In the liquefied petroleum gas (LPG) trade, 'industrial installations' generally refer to the installation at factories and the 'commercial installations' relate to the larger type of catering establishments, such as hotel, restaurants and canteens.
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Monday 10 December 2012

पेट दर्द के घरेलू उपचार


अच्छे जीवन के लिए जरूरी है अच्छा स्वास्थ्य। इस संबंध में कहावत मशहूर हैं जैसे कि हेल्थ इज वेल्थ, पहला सुख निरोगी काया आदि। अधिकतर बीमारियों की वजह होती है असंयमित खान-पान। गलत खानपान के कारण कभी-कभी पेट में दर्द होने लगता है। यूं तो पेट दुखने के अलग-अलग कई कारण हो सकते हैं, लेकिन आमतौर पर पेट दर्द का एक मुख्य कारण अपच, मल सूखना, गैस बनना यानी वात प्रकोप होना और लगातार कब्ज बना रहना भी है। पेट दर्द को दूर करने के लिए कुछ घरेलू उपाय है, जो दर्द तो दूर करते है, साथ ही साथ पेट की क्त्रियाओं को भी ठीक करते है। आइए जानें इन उपायो के बारें में।

पेट दर्द के लिए घरेलू उपचार

-पेट दर्द मे हींग का प्रयोग लाभकारी होता है। 2 ग्राम हींग थोड़े पानी के साथ पीसकर पेस्ट बनाएं। नाभी पर और उसके आस-पास यह पेस्ट लगाए।

-अजवाइन को तवे पर सेक लें और काले नमक के साथ पीसकर पाउडर बनाएं। 2-3 ग्राम गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार लेने से पेट का दर्द दूर होता है।

-जीरे को तवे पर सेकें और 2-3 ग्राम की मात्रा गर्म पानी के साथ दिन में 3 बार लें। इसे चबाकर खाने से भी लाभ होता है।

-पुदिने और नींबू का रस एक-एक चम्मच लें। अब इसमें आधा चम्मच अदरक का रस और थोडा सा काला नमक मिलाकर उपयोग करें। दिन में 3 बार इस्तेमाल करें, पेट दर्द में आराम मिलेगा।

-सूखी अदरक मुंह में रखकर चूसने से भी पेट दर्द में राहत मिलती है।

-बिना दूध की चाय पीने से भी कुछ लोग पेट दर्द में आराम महसूस करते हैं।

-अदरक का रस नाभी स्थल पर लगाने और हल्की मालिश करने से पेट दर्द में लाभ होता है।

-अगर पेट दर्द एसिडीटी से हो रहा हो तो पानी में थोड़ा सा मीठा सोडा डालकर पीने से फ़ायदा होता है।

-पेट दर्द निवारक चूर्ण बनाएं। इसके लिए भुना हुआ जीरा, काली मिर्च, सौंठ, लहसुन, धनिया, हींग सूखी पुदीना पत्ती, सबकी बराबर मात्रा लेकर बारिक चूर्ण बनाएं। इसमें थोडा सा काला नमक भी मिलाएं। खाने के बाद एक चम्मच थोड़े से गर्म पानी के साथ लें। पेट दर्द में आशातीत लाभकारी है।

-एक चम्मच शुद्ध घी में हरे धनियें का रस मिलाकर लेने से पेट की व्याधि दूर होती है।

-अदरक का रस और अरंडी का तेल प्रत्येक एक-एक चम्म च मिलाकर दिन में 3 बार लेने से पेट दर्द दूर होता है।

-अदरक का रस एक चम्मच, नींबू का रस 2 चम्मच लेकर उसमें थोडी सी शक्कदर मिलाकर प्रयोग करें। पेट दर्द में लाभ होगा। दिन में 2-3 बार ले सकते हैं।

-अनार पेट दर्द मे फायदेमंद है। अनार के बीज निकालें। थोडी मात्रा में नमक और काली मिर्च का पाउडर डालें। और दिन में दो बार लेते रहें।

-मेथी के बीज पानी में भिगोएं। पीसकर पेस्ट बनाएं। और इस पेस्ट को 200 ग्राम दही में मिलाकर दिन में दो बार लेने से पेट के विकार नष्ट होते हैं।

-इसबगोल के बीज दूध में 4 घटे भिगोएं। रात को सोते समय लेते रहने से पेट में मरोड का दर्द और पेचिश ठीक होती है।

-सौंफ में पेट का दर्द दूर करने के गुण होते है। 15 ग्राम सौंफ रात भर एक गिलास पानी में भिगोएं। छानकर सुबह खाली पेट पीयें। बहुत गुणकारी उपचार है।

-आयुर्वेद के अनुसार हींग दर्द निवारक और पित्तव‌र्द्धक होती है। छाती और पेट दर्द में हींग का सेवन बेहद लाभकारी होता है। छोटे बच्चों के पेट में दर्द होने पर एकदम थोड़ी सी हींग को एक चम्मच पानी में घोलकर पका लें। फिर बच्चे की नाभि के चारों लगा दें। कुछ देर बाद दर्द दूर हो जाता है।

-नींबू के रस में काला नमक, जीरा, अजवायन चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से पेट दर्द से आराम मिलता है। 



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Sunday 9 December 2012

'मॉड्यूनॉल' का रोगों पर प्रहार


मॉड्यूनॉल नामक तत्व ने आधुनिक मेडिकल साइंस में सभावनाओं के कई द्वार खोल दिए हैं। दुनिया भर के अनेक मशहूर डॉक्टरों और अध्ययनकर्ताओं ने इस तत्व को अनेक रोगों के इलाज में कारगर माना है। क्या है यह तत्व और इसकी खूबिया क्या हैं..?

अब विकसित देशों में अर्थराइटिस और दिल के रोगी बढ़ने लगे, तब वैज्ञानिकों ने इन बीमारियों का समुचित इलाज तलाशने के लिये दुनिया भर में प्रयास किये। इन्हींप्रयासों के दौरान उन्होंने कई सर्वेक्षणों के बाद यह निष्कर्ष निकाला था कि न्यूजीलैंड के एक समुद्री तट पर रहने वाले मायोरी प्रजाति के आदिवासी लोग 80 वर्ष की उम्र होने के बाद भी स्वस्थ हैं। वे न तो जोड़ों में दर्द की समस्या से ग्रस्त है और न ही दिल और फेफड़े से सबधित तकलीफों से।

'मसेल' बना वरदान

ऐसे में वैज्ञानिकों ने मायोरी प्रजाति के इन लोगों के खान-पान के सदर्भ में विश्लेषण किया। इस विश्लेषण से पता चला कि उनका मुख्य आहार समुद्री तटों पर पाया जाने वाला एक समुद्री जीव है। इस जीव को ग्रीन लिप्ड मसेल कहते है। बहरहाल, वैज्ञानिकों ने मसेल को विभिन्न रोगों के इलाज में कारगर बनाने के लिये काफी प्रयोग किये। अंतत: जब मसेल के निचोड़ को एक पेटेन्टेड पद्घति द्वारा परिष्कृत किया गया, तब एक असाधारण तत्व मॉड्यूनॉल का निर्माण हुआ, जो अब कई रोगों के इलाज में वरदान साबित हो रहा है। आइए जानते हैं कि देश में पिछले दो सालों से उपलब्ध मॉड्यूनॉल नामक तत्व ने किस तरह अपनी उपयोगिता साबित की है

उदाहरण के तौर पर मुंबई निवासी हर्ष चौहान और वैभव चौहान उम्र में क्रमश: 8 और 6 वर्ष के है, लेकिन डयूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक रोग ने इन भाइयों को अपने स्वास्थ्य के प्रति काफी सजग कर दिया है। जैसे ही इन बच्चों में लड़खड़ाहट और सीढ़ी चढ़ने में तकलीफ की शुरुआत हुई,तो उन्हें स्टेरॉयड-कार्टीसोन देने के बजाय मॉड्यूनॉल का सेवन करने की सलाह दी गयी। यह तत्व बच्चों की मासपेशियों के क्षय को रोकने के अलावा उन्हें ऊर्जा भी प्रदान कर रहा है। ऐसी ऊर्जा जो एक चचल बालक के लिए बहुत आवश्यक है। नतीजा सामने है कि इस गभीर जेनेटिक रोग के कारण प्रतिवर्ष होने वाली 10 से 15 प्रतिशत की मासपेशियों की कमजोरी आज भी उनसे दूर है।

वैज्ञानिक कसौटी पर

उतरा खरा

वास्तव में मॉड्यूनॉल अपने चमत्कारिक प्रभाव की वजह से मासपेशियों और जोड़ों में ही नहीं, बल्कि नसोंके पुनर्निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शायद इसीलिए स्पाइनल कॉर्ड इंजरी से ग्रस्त बरेली निवासी प्रशान्त शुक्ला स्टेम सेल का इलाज आगे न ले सकने के बावजूद दिनोंदिन बेहतर होते जा रहे है और उनके पैरों की ताकत तेजी से वापस आ रही है।

इसी तरह अर्थराइटिस के इलाज में यह तत्व लखनऊ निवासी चमन लाल यादव के लिए भी वरदान साबित हुआ। यादव अपने बाएं कूल्हे के जाम होने और दर्द से पिछले 15 वर्षो से परेशान थे।

दुनिया के चार महाद्घीपों में उपलब्ध इस तत्व ने अपनी उपयोगिता हर मापदंड पर साबित की है। मॉड्यूनॉल पर शोध कार्य करने वाली ब्रिटेन के ग्लासगो हॉस्पिटल में कार्यरत डा. शीला गिब्सन के अनुसार यह तत्व रूमैटॉइड और ऑस्टियोअर्थराइटिस के इलाज में काफी लाभप्रद साबित हुआ है। महत्वपूर्ण बात यह कि इस तत्व के दुष्परिणाम भी नही है। यही नहीं, यह तत्व बच्चों से लेकर वृद्धों तक में सुरक्षित और कारगर रूप से कार्य करता है।

क्वीन्सलैंड विश्वविद्यालय के डॉ. डागरैल के अनुसार यह तत्व सूजन को कम करने के अलावा शरीर की प्रतिरक्षण शक्ति को नियत्रित करने का भी कार्य भी करता है। इसलिए यह ऑटो इम्यून रोगों जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन्स डिजीज, रूमैटॉइड अर्थराइटिस ओर एन्कायलोसिग स्पोंडिलाइटिस आदि में भी काफी उपयोगी है।

इन रोगों में कारगर

- रूमैटॉयड अर्थराइटिस व ऑस्टियो अर्थराइटिस में।

-हृदय व सास से सबधित बीमारिया।

-मस्कुलर-डिस्ट्रॉफी नामक रोग।

-अत्यधिक शारीरिक क्षमता वाले खेलों जैसे साइक्लिग,फुटबाल और क्रिकेट आदि में शारीरिक क्षमता बढ़ाने के लिए।


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Friday 7 December 2012

कम वसामुक्त भोजन रखेगा आपको पतला


अगर आप अपने मोटापा को घटाने के लिए रात दिन मशक्कत करते है। इसके बावजूद मनमाफिक परिणाम नहीं मिल रहे हैं तो यह खबर आपके लिए है। अपने खानपान में वसायुक्त खाद्य पदार्थो की जगह कम वसायुक्त

चीजों को शामिल करें इससे दुबला होने में मदद मिलेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) समर्थित एक शोध में यह बात कही गई है।

अमेरिका, यूरोप व न्यूजीलैंड में 73,589 लोगों पर किए गए 33 परीक्षण में पता चला है कि कम वसायुक्त भोजन खाने से लोगों को 3.5 पाउंड वजन कम करने में मदद मिलती है। शोधकर्ताओं ने कहा कि शोध के परिणाम पहली बार साबित करते हैं कि बिना अधिक मशक्कत के भी लोग अपना वजन कम कर सकते हैं। प्रमुख शोधकर्ता यूर्निवसिटी ऑफ ईस्ट एंजेलिया मेडिकल स्कूल की ली हूपर ने कहा कि जब लोग कम वसा वाला भोजन खाते हैं तो उनकावजन घटता है।

शोध के दौरान उन लोगों पर ध्यान केंद्रित किया गया जो अपने खानपान में वसा की कटौती कर रहे थे, लेकिन उनका लक्ष्य वजन को कम करना नहीं था। इसलिए वे सामान्य भोजन खा रहे थे। हूपर ने कहा कि आश्चर्यजनक बात यह थी कि उनका वजन कम हुआ और उनकी कमर पतली हुई। शोधकर्ताओं ने बताया कि डब्ल्यूएचओ के न्यूट्रीशन गाइडेंस एक्सपर्ट एडवाइजरी ग्रुप से वसा के सेवन पर दिशा-निर्देशों को अपडेट करने के आग्रह के बाद

उसने शोध की समीक्षा की। अब डब्ल्यूएचओ वैश्रि्वक स्तर पर इसकी सिफारिश करेगा। मोटापे के कारण कई बीमारियों जैसे कैंसर, स्ट्रोक और दिल संबंधी अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। इसके कारण दुनियाभर में हर साल करीब 17 लाख लोगों की मौत हो जाती है।



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Thursday 6 December 2012

थायराइड के दौरान कैसे करें वजन कम


थायराइड ग्रंथि हमारे शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करने का काम करती है। जब यह ग्रंथि सही तरीके से काम नहीं करती है तो इसके चलते कई स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। हायपरथायराइडिज्म एक ऐसी ही स्थिति है। इस स्थिति में थायराइड ग्रंथि से अधिक मात्रा में थायराइड का निर्माण होने लगता है। और हायपोथायराइडिज्मि में इसके उलट थायराइड ग्रंथि कम मात्रा में थायराइड का निर्माण करती है। दोनों को अलग-अलग इलाज की जरूरत होती है। हायपरथायराइडिज्म में वजन कम होता है, लेकिन हायपोथायराइडिज्म में वजन काफी बढ़ जाता है। और इस बीमारी में वजन को काबू कर पाना आसान नहीं होता। आइए जानें थायराइडिज्म में वजन कैसे काबू किया जाए।

चैकअप कराएं

सबसे पहले इस बात की जाच करवाएं कि आपको थायराइड का कौन सा प्रकार है। क्या आपको एंडरएक्टिव थायराइड है या ओवरएक्टिव थायराइड। डॉक्टर आपकी जाच करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचेगा कि आपको वास्तव में आपको थायराइड है या नहीं। और अगर है तो आप किस तरह के थायराइड से पीड़ित हैं। इस जाच के नतीजे के बाद ही वह आगे कोई रास्ता बताएगा। डॉक्टर इस बात की भी जाच

करेगा कि आपकी गर्दन पर किसी तरह की कोई गाठ तो नहीं है। और अगर है तो यह किस प्रकार की है और इसका थायराइड से कोई संबंध तो नहीं। इसके बाद अन्य जरूरी जाच करने के बाद डॉक्टर इस नतीजे पर पहुंचेगा कि वजन नियंत्रित करने के लिए आपको किस तरह की दिनचर्या और इलाज की जरूरत है।

समय पर लें दवाएं

इस बात का खयाल रखें कि आप थायराइड की दवा नियमित और सही समय पर लें। एंडरएक्टिव थायराइड में दी जाने वाली कुछ दवाओं को असर भी चयअपचय पर पड़ता है और इससे वजन कम करने में मदद मिलती है। हॉर्मोन रिप्लेसमेंट की सर्जरी के बाद थायराइड बेहतर तरीके से काम करने लगता है और इससे भी वजन नियंत्रण में रहता है।

अच्छा खाएं

आप अगर अपने वजन को लेकर अच्छे नतीजे हासिल करना चाहते हैं तो जरूरी है कि दवाओं के साथ-साथ अपने आहार के प्रति भी सजग रहें। अपने भोजन में ऐसे खाद्य पदाथरें को शामिल करें जो आपकी पाचन शक्ति को दुरुस्त रखे। आपको चाहिए कि आप अपने आहार में सब्जिया, फल और कम वसायुक्त डेयरी उत्पादों और प्रोटीन खाद्य पदाथरें को शामिल करें। इस बात का भी ध्यान रखें कि आप कभी भी भूखे न रहें। जब भी भूख लगे तो सब्जिया, फल को तरजीह दें। चिप्स और अन्य हाई कैलोरी उत्पादों से दूर रहें।

नियमित व्यायाम करें

सप्ताह में कम से कम पाच दिन तीस मिनट रोज व्यायाम करें। आप चाहें तो स्विमिंग कर सकते हैं या फिर जॉगिंग और साइक्लिंग भी कर सकते हैं। इस तरह की कसरत के अलावा आप अगर वेट ट्रेनिंग एक्सारसरइज भी करते हैं तो इससे आपका दिल तो स्वस्थ रहेगा ही साथ ही आपका मेटाबॉलिज्म भी बढ़ेगा। और इसका सकारात्मक असर थायराइड पर भी पड़ता है। एक्सरसाइज करने से शरीर तो सेहतमंद रहता ही है साथ ही वजन भी कम होता है।

डॉक्टर की बात मानें

डॉक्टर से अपनी कोई भी मीटिंग न छोड़ें। डॉक्टर आपके थायराइड स्तर की नियमित जाच करने के बाद ही आपको आगे का इलाज और आहार आदि के बारे में राय देगा।


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