Monday 11 March 2013

क्यों जरूरी है कैल्शियम


आजकल ज्यादातर लोगों को हड्डियों, मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द की समस्या हो जाती है। अगर आप अपने परिवार को इससे बचाना चाहती हैं तो रोजाना के भोजन में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम युक्त चीजें जरूर शामिल करें। केवल शरीर ही नहीं, मस्तिष्क की सही कार्यप्रणाली के लिए भी इसका सेवन बहुत जरूरी है।


जिन पोषक तत्वों से मानव शरीर की रचना होती है, कैल्शियम उसका महत्वपूर्ण घटक है। कार्बन, हाइड्रोजन और नाइट्रोजन के बाद शरीर में कैल्शियम की मात्रा सबसे अधिक होती है। इसमें से 90 प्रतिशत कैल्शियम हड्डियों व दांतों में पाया जाता है। इसकी कुछ मात्रा हमारे रक्त में भी होती है। इसके अलावा मस्तिष्क के सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड में व स्तन ग्रंथियों से स्त्रावित दूध में भी कैल्शियम होता है।

कैल्शियम के कार्य

कैल्शियम से न सिर्फ हड्डियां मजबूत होती हैं, बल्कि उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और कैंसर के खतरों से भी बचाव होता है। यह नर्वस सिस्टम के माध्यम से हमारी मांसपेशियों को गतिशील बनाने में सहायक होता है। रक्त में निश्चित मात्रा में घुला कैल्शियम कोशिकाओं के हर पल सक्रिय रहने के लिए आवश्यक है। गर्भावस्था के दौरान गर्भस्थ शिशु की हड्डियों के विकास के लिए गर्भवती स्त्रियों को कैल्शियम युक्त पदार्थो का भरपूर सेवन करना चाहिए। डॉक्टर की सलाह पर उन्हें कैल्शियम की गोलियों का भी सेवन करना चाहिए। जब बच्चों के दांत निकलने शुरू हों तो उन्हे पर्याप्त मात्रा में दूध और उससे बनी चीजें देनी चाहिए। टीनएजर्स के समुचित शारीरिक विकास के लिए उन्हें भी अधिक कैल्शियम की जरूरत होती है।

बढ़ती उम्र में कैल्शियम

30 साल की उम्र तक हड्डियां पूरी तरह विकसित हो जाती है, लेकिन शरीर को कैल्शियम की जरूरत तब भी होती है। 40 वर्ष की उम्र के बाद स्त्रियों में मेनोपॉज की अवस्था आती है। इस समय उन्हे प्रतिदिन 1500 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता होती है। इस उम्र में कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं और ऑस्टियोपोरोसिस होने का खतरा बढ़ जाता है। अत: आप अपने रोजाना के खानपान में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम युक्त चीजें जरूर शामिल करें। नियमित एक्सरसाइज भी आपके लिए फायदेमंद साबित होगा।

प्रमुख स्रोत

दूध और उससे बनी चीजों जैसे- दही, पनीर और चीज आदि का सेवन करें। औसतन एक गिलास दूध में 300 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। सफेद रंग के सभी फलों और सब्जियों जैसे-केला, नारियल, शरीफा, अमरूद, गोभी और मूली आदि में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है।

कैसे करें सेवन

हम जितना कैल्शियम भोजन के माध्यम से लेते है, उसमें से मात्र 30 प्रतिशत ही मेटाबॉल्जिम के माध्यम से हम तक पहुंच पाता है। शेष कैल्शियम उत्सर्जन की प्रक्रिया द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है। हमारे शरीर में कैल्शियम के अवशोषण और उसके पाचन के लिए फास्फोरस और विटामिन डी की भी आवश्यकता होती है। आम तौर पर सभी कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थो में फास्फोरस भी पाया जाता है। इसलिए अलग से फास्फरेरस के सेवन की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन हड्डियों के लिए विटमिन डी बहुत जरूरी है। इसकीप्राप्ति के लिए प्रतिदिन सूरज की रोशनी में थोड़ा वक्त जरूर बिताएं। हमारे रोजमर्रा के संतुलित और पौष्टिक भोजन से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिल जाता है। इसलिए बिना डॉक्टर की सलाह लिए कैल्शियम की गोलियों का सेवन न करें, क्योंकि यह सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

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Sunday 10 March 2013

जंक फूड की लत नशे जैसी ही

क्या भूख लगने पर आपकी बर्गर खाने की तीव्र इच्छा होती है ? क्या फ्रैंच फ्राईज़ का ख्याल आपको मैक डोनाल्ड तक ले जाता है ? क्या आप कठोर तौर पर यह कह सकते हैं कि आपको फास्ट फूड की लत है। आइये फास्ट फूड की लत से पीछा छुड़ाने के कुछ तरीके जानें

 जुपिटर के स्क्रिप्स रिसर्च इन्टीट्यूट, फ्लारिडा में हुए एक नये शोध के अनुसार फास्ट फूड की लत तम्बाकू या हिरोइन की लत की ही तरह होती है । यह समस्या सिर्फ युवाओं में ही नहीं बल्कि बच्चों  में भी बढ़ती जा रही है ।

सभी उम्र के बच्चों पर ऐसी लत का ध्यान देना आवश्यक है । ‘सुपरसाइज़ मी’ एक ऐसे कहानी है, जिसमें एक व्यक्ति को मैक डी के आहार की लत लग जाती है और वो सिर्फ पि़ज्जा़ और बर्गर खाकर खुश रहता है। शुगर और खाद्य पदार्थ भी दिमाग पर कुछ वैसे ही प्रभाव डालते हैं जैसे कि ड्रग्स और धीरे – धीरे इसका प्रभाव हमारी भूख पर पड़ने लगता है।

सबसे भयानक बात यह है कि ऐसी लत का पता व्यक्ति को बहुत समय बाद लगता है और तबतक व्यक्ति का वज़न कई गुना बढ़ चु‍का होता है । ध्यान देने योग्य सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति को हमेशा अपने आहार पर ध्यान देना चाहिए । आर्टेमिस की हैड आहार विशेषज्ञ ज़्योती अरोड़ा के अनुसार, आप जो भी आहार लेते हैं उसे कम मात्रा में लें । ध्यान रखें कि यह बात महत्व नहीं रखती कि आप क्या खा रहे हैं, बल्कि यह बात महत्व रखती है कि आप कितना खा रहे हैं । इसके अलावा लत का एक कारण यह हो सकता है कि आप वसा की कितना मात्रा ले रहे हैं या किस मात्रा में जंक फूड का सेवन कर रहे हैं ।

लत को मानने का सबसे कठोर चरण है इसे स्वीकार करना । एक बार जब आप अपनी लत को स्वीकार कर लेंगे तो अपनी इच्छा शक्ति की मदद से इससे बचने के रास्ते आप स्वयं ही तलाश लेंगे । मैक्स हैल्थ केयर अस्पताल की मुख्य आहार विशेषज्ञ डा रितिका समद्दार का मानना है कि दृढ़ इच्छा शक्ति सर्वोच्च है और कुछ स्थितियों में परामर्श से भी मदद मिलती है। ध्यान रखें कि आपको बहुत तेज़ भूख ना लगने पाये। साइकोथेरेपिस्ट्स के अनुसार क्रेविंग ऐसी स्‍थिति जिसका असर सिर्फ 15 मिनट तक रहता है ।

भूख लगने पर पानी पीयें क्‍योंकि कभी-कभी हमारा शरीर प्यास के संकेत को भूख की स्थिति मान बैठता है। कुछ चिकित्सक क्रेविंग से बचने के नुस्खे बताते हैं। शुरूवात कुछ इस प्रकार करें, पहले दिन कोई भी जं‍क फूड ना खायें और फिर दूसरे दिन पुरस्कार के रूप में थोड़ा सा जंक फूड खायें। दोबारा दो दिन तक कोई भी जं‍क फूड ना खायें और फिर तीसरे दिन पुरस्कार के रूप में थोड़ा सा जंक फूड खायें । लगातार ऐसा तब तक करते रहें जबतक कि आप अपने आपको क्रेविंग या भूख लगने की स्थिति का सामना करने के काबिल ना बना लें ।

डा अरोड़ा के अनुसार फास्ट फूड को ना कहना आपके स्वास्‍थ्‍य के लिए अच्छा है । यह कई बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि आप कहां पैदा हुए हैं, आपके घर पर कैसे आहार का सेवन होता है । वो बच्चे जिनके खान–पान की आदतों पर नज़र रखी जाती है, उनमें ऐसी समस्या कम होती है । 14 वर्षीय अभय (बदला हुआ नाम), जो कि साउथ दिल्ली के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ता है, उसका वज़न 121 किलो है और उसकी जीवनशैली कुछ ऐसी है:

सुबह वो देर से उठता है और स्कूल जाने से पहले ब्रेकफास्ट में फास्ट  फूड लेता है, कार में बैठ कर कुछ बिस्किट खाता है । स्कूल पहुंचकर कैन्टीन से दो समोसे और कोल्ड ड्रिंक पीता है । अधिकतर समय वो लंच में पिज्जा़, बर्गर और फ्राईज़ मंगाता है क्योंकि उसके अनुसार घर का खाना बोरिंग होता है । अकसर वो पेट भरा होने के कारण रात का खाना नहीं खा पाता और उसके कम्यूटर के इर्द-गिर्द या बैग में स्नैक्स भरे होते है । वो देर रात तक जागता है और भूख लगने पर स्नैक्स और कोल्ड  ड्रिंक का सेवन करता है। उसके माता और पिता दोनों ही कार्यरत हैं और रात का खाना जो कि विशेष रूप से उसके लिए बनाया जाता है, वो खाने को मना करता है । इस बच्चे को विशेष रूप से फास्ट फूड की लत लगी हुई है ।

बच्चों  के स्वास्‍थ्‍य के लिए अभिभा‍वक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि यह आगे जाकर बच्चों की आदत बन जाती है । 21वीं सदी के बच्चों में अमेरिका की सबसे बड़ी समस्या है, बच्चों और किशोरों में मोटापा जो कि दक्षिणी जीवनशैली में बहुत ही आम है । हमें ऐसी समस्याओं के बारे में जानकारी रखनी चाहिए।

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Friday 8 March 2013

अनशन स्वास्थ्य के लिए अच्छा या नही

अन्ना के अनशन को देखते हुए हममें से बहुत लोगों के दिमाग में ऐसे ख्याल आ रहे हैं कि अनशन का हमारे स्‍वास्‍थ्‍य पर क्‍या प्रभाव पड़ सकता है। क्या अनशन हमारे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए अच्छा है या नहीं। गांधीजी ने भी 21 दिनों का अनशन किया था। पुराने समय में बहुत से ऋषि मुनियों के बारे में ऐसा कहा गया है कि वो महीनों तक अन्न और जल नहीं ग्रहण करते थे। सवाल यह उठता है कि आप कितनी देर तक बिना कुछ खाये-पीये आसानी से रह सकते हैं ।

चिकित्सकों का मानना है कि एक स्वस्थ व्यक्ति सिर्फ पानी के सहारे कम से कम आठ हफ्ते तक आसानी से रह सकता है । अनशन आपकी स्वास्‍थ्‍य स्थितियों पर भी बहुत हद तक निर्भर करता है।

अनशन के स्‍वास्‍थ्‍य लाभ-

  • अनशन का सबसे बड़ा फायदा है शरीर में होने वाली डीटाक्‍सिफिकेशन की प्रक्रिया, जिसमें कि शरीर से टाक्सिन निकल जाते हैं।
  • आप हल्‍का महसूस करते हैं।
  • अनशन तब असरदार हो सकता है जबकि आप पूरे हफ्ते तक इसको निभायें और अनशन के बाद फिरसे खाना खाने पर सावधानी बरतें।
  • अनशन के साथ पानी पीना बेहद ज़रूरी है, तभी आपके शरीर की संचार प्रणाली ठीक प्रकार से काम करेगी ।

अनशन के प्रतिकूल प्रभाव



  • अगर आप खाना नहीं खाते हैं, तो ठंडा और गर्म दोनों ही  तरह का वातावरण आपके लिए हानिकारक होता है ।
  • खाना ना खाने से शरीर में पानी की भी कमी हो जाती है क्योंकि आप आहार के दूसरे स्रोतों से पानी की आपूर्ति नहीं कर पाते हैं।
  • खाना ना खाने से शरीर में कमजोरी आने लगती है ।
  • ज्यादा समय तक खाना ना खाने से व्यक्ति की सोचने समझने की क्षमता भी प्रभावित होती है ।
  • व्याक्ति की रोग प्रतिरोधी क्षमता भी कमजोर हो जाती है।
  • ज्यादा समय तक भूखे रहने से हृदय गति भी प्रभावित हो सकती है ।
  • तीन दिन तक अगर आपने कुछ नहीं खाया है, तो आपका पेट और छोटी आंत गैस्ट्रिक जूस बनाना बंद कर देंगे ।
  • 20 दिन से ज्यादा दिनों तक खाना ना खाने से अल्सर होने की संभावना बढ़ जाती है।


हमारे लिए खाना जितना ज़रूरी है, पानी भी उतना ही ज़रूरी है आइये जाने ज्यादा समय तक पानी ना पीने से किस प्रकार की समस्याएं हो सकती हैं। पानी के बिना रहना, खाने के बिना रहने से कहीं ज्यादा मुश्किल है ।

  • गर्मियों में पानी की कमी से एक घंटे के अंदर ही डिहाइड्रेशन होने की संभावना बढ़ जाती है।
  • छोटा बच्‍चा या बीमार व्यक्ति की कुछ  ही घंटों में जान भी जा सकती है।
  • हमारे शरीर से पसीना, यूरीन के रूप में और यहां तक कि सांस लेने में भी पानी का प्रयोग होता है, इसलिए पानी हमारे लिए बेहद आवश्यक है। लंबे समय तक पानी ना पीने से हीट स्ट्रोक तक हो सकता है।
  • लंबे समय तक पानी की कमी होने से मुंह में सैलाइवा की कमी हो जाती है और मुंह भी सूखने लगता है।
  • यूरीन के रंग और मात्रा में बदलावा होने लगता है।
  • हृदय गति का बढ़ जाना ।
  • थकान, चिड़चिड़ाहट और उल्टियां और डायरिया भी हो सकता है ।

सामान्य स्वास्‍थ्‍य वाला व्यक्ति बिना पानी के 3 से 5 दिनों तक रह सकता है ।

Thursday 7 March 2013

खाते-खाते वजन घटाओ

वजन घटाने के लिए खाना छोड़ना या कम करने की सलाह पूरी दुनिया में दी जाती है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी भी हैं जिन्हें खाकर आप वजन घटा सकते हैं। ऐसी ही कुछ चीजों का जिक्र हम यहां कर रहे हैं।

खाने से वजन बढ़ता है, ये तो दुनिया जानती है, लेकिन कुछ ऐसे भोजन भी हैं जिनके सेवन से आपका वजन कम होता है। वजन पर नियंत्रण रखना स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद आवश्यक है और क्विक वेट लॉस आजकल एक ट्रेंड-सा बन गया है। हालांकि इसके कई तरीके हैं लेकिन विभिन्न रिसर्चो की मानें तो सही किस्म का भोजन वजन कम करने में सबसे ज्यादा सहायक होता है। कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्हें अपनी डाइट में शामिल करने से वजन को नियंत्रित रखा जा सकता है। ऐसे ही कुछ भोज्य पदार्थो का यहां जिक्र किया जा रहा है।

बींस- बींस को वेट लॉस के लिहाज से सबसे अच्छा माना जाता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की एक रिसर्च के अनुसार बींस में ऐसे तत्व होते हैं जो कॉलेसिस्टॉकिनिन नाम के डाइजेस्टिव हार्मोन को लगभग दो गुना बढ़ाने में मदद करते हैं। कुछ अध्ययनों के अनुसार बींस ब्लड शुगर के स्तर को मेंटेन करने में मदद करता है ताकि अगर आपको लंबे समय तक भूखा रहना पड़े तो आपके लिए नुकसानदेह न हो। बींस को हाई फाइबर डाइट माना जाता है जो कॉलेस्ट्राल को कम करने में भी मदद करता है।

अंडे- अंडे प्रोटीन का खजाना होते हैं। सुबह नाश्ते में अंडे खाना सेहत के लिहाज से बहुत अच्छा होता है। एक रिसर्च में पाया गया कि वे स्त्रियां जो नाश्ते में स्क्रैम्बल्ड एग्ज के साथ दो स्लाइस टोस्ट और कम कैलरी वाला फ्रूट स्प्रेड लेती हैं, उन्हें आम नाश्ता खाने वाली स्त्रियों के मुकाबले कम भूख लगती है। कम भूख लगने से जाहिर है इंसान कम कैलरी कंज्यूम करेगा।

सैलेड- क्या आपको लंच या डिनर के दौरान खुद को स्टफ कर लेने की आदत है? यदि हां, तो अपनी मील की शुरुआत सैलेड से करें। ध्यान रखें कि यह सैलेड क्रीमी ड्रेसिंग के बगैर होना चाहिए। पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में 42 स्त्रियों पर हुए एक अध्ययन में देखा गया कि जिन्होंने मील के पहले एक बड़ी प्लेट लो कैलरी सैलेड खाया, वे बाद में लगभग 12 प्रतिशत कम पास्ता ही खा सकीं। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार इसकी वजह रहा सैलेड। अमेरिकन डायटिक एसोसिएशन के एक जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट की मानें तो सैलेड में विटामिन सी और ई के अलावा फॉलिक एसिड, लाइकोपीन और कैरोटेनॉयड्स आदि पोषक तत्व मौजूद हैं जो प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं।

ग्रीन टी- ग्रीन टी उन सभी लोगों के लिए बेहतरीन पेय है जो वजन कम करने की इच्छा रखते हैं। ग्रीन टी में कैटेशिंस नाम के एंटीऑक्सिडेंट्स मौजूद होते हैं जो फैट बर्न करने और मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करते हैं। विभिन्न शोधों से पता चला है कि ग्रीन टी बॉडी मास इंडेक्स को घटाने और हानिकारक एलडीएल कॉलेस्ट्रॉल को कम करने में भी मदद करती है।

नाशपाती- नाशपाती फाइबर का खजाना होती है। यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार लगभग छह ग्राम की एक नाशपाती आपकी भूख को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त होती है। संस्था के अनुसार भूख मिटाने के लिए सेब नाशपाती के बाद सबसे अच्छा स्रोत है। दोनों ही फलों में पेक्टिन फाइबर होता है जो ब्लड शुगर के स्तर को कम करता है। असमय भूख लगने पर हाई कैलरी स्नैक्स लेने के बजाय नाशपाती खाएं, आपके शरीर में गैरजरूरी कैलरी पहुंचने से बचेगी।

सूप- एक कप चिकन सूप और एक नॉर्मल साइज चिकन पीस से लगभग एक जैसी ही भूख मिटती है। शोधकर्ताओं की मानें तो चिकन सूप भूख कम करने में सहायक होता है।

लीन बीफ- अगर आप अपने शरीर के एक्स्ट्रा पाउंड्स को कम करने की चाह रखते हैं तो लीन बीफ को अपने डिनर में शामिल कर लीजिए। अगर आप रोजाना 1700 कैलरी की डाइट लेते हैं तो 9-10 आउंस लीन बीफ आपकी डाइट का एक अहम हिस्सा बन सकती है। बीफ खाने वालों को भूख भी कम लगती है, इसलिए भी इसे वेट लॉस फूड की कैटगरी में शामिल किया जाता है।

ऑलिव ऑयल- बढ़ती उम्र में फैट कम करना मुश्किल होता है। ऐसे में ऑलिव ऑयल आपके लिए मददगार साबित हो सकता है। ऑलिव ऑयल मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स से बना होता है जो कैलरी बर्न करने में सहायक होता है। ऑलिव ऑयल को सॉते करने या सैलेड ड्रेसिंग के तौर पर बखूबी प्रयोग किया जा सकता है। ऑस्ट्रेलिया में 57 से 73 वर्ष की स्त्रियों पर किया गया, एक अध्ययन यह साबित करता है कि ऑलिव ऑयल मेटाबॉलिज्म बढ़ाने में मदद करता है। इस अध्ययन में शामिल स्त्रियों को नाश्ते में स्किम्ड मिल्क और ओटमील में ऑलिव ऑयल डालकर दिया गया था।

दालचीनी- भोजन के बाद मीठा मोटापे का बड़ा कारण होता है। माइक्रोवेव किए हुए ओटमील या होल-ग्रेन टोस्ट पर दालचीनी पाउडर छिड़क कर खाएं, आपको इस 'क्रेविंग' से भी छुटकारा मिलेगा और अनचाही कैलरीज से भी। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार थोड़ी-सी दालचीनी खाकर भोजन के बाद मीठे की क्रेविंग से आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है। दालचीनी सेहत के लिहाज से भी बहुत अच्छी है। एक-चौथाई छोटा चम्मच दालचीनी का पाउडर का रोजाना सेवन टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों में ब्लड शुगर और कॉलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक होता है।

विनेगर- विनेगर के सेवन से लंबे समय तक भूख नहीं लगती। एक स्वीडिश अध्ययन के अनुसार प्लेन ब्रेड खाने वालों के मुकाबले ब्रेड स्लाइस को विनेगर में डुबो कर खाने वालों को भूख कम लगती है। विनेगर में मौजूद एसिटिक एसिड से पाचन में समय लगाता है, जिससे भूख देर से लगती है।

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Wednesday 6 March 2013

किडनी को बचाएं पथरी से

डेडलाइंस का दबाव और घंटों कुर्सी पर बैठे रहना, लंबी मीटिंग्स के दौरान यूरिनेशन कंट्रोल, अनियमित खानपान, जंक फूड.., आज की पीढ़ी इसी जीवनशैली की अभ्यस्त है। इस कार्य-संस्कृति की कीमत चुका रही है सेहत। यह जीवनशैली डायबिटीज व हृदय-रोगों के अलावा किडनी स्टोन को भी जन्म दे रही है। गुर्दे में पथरी के दो बड़े कारण हैं। पहला पानी कम पीना और दूसरा मूत्रत्याग रोकना।

क्या है किडनी स्टोन

नई दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार यूरोलॉजिस्ट डॉ. अंशुमान अग्रवाल कहते हैं, 'यूरिन में मौजूद सॉल्ट व मिनरल्स से मिलकर बनती है पथरी। पथरी धूल-कणों जितनी छोटी भी हो सकती है और गोल्फ बॉल जितनी बड़ी भी। ये सभी तत्व यूरिनेशन के जरिये बाहर निकलते हैं। गुर्दे की पथरी आजकल आम समस्या बन चुकी है। हर वर्ष लगभग तीन मिलियन लोग इन समस्याओं के चलते अस्पताल जाते हैं और इनमें से एक चौथाई से अधिक इमरजेंसी में भर्ती होते हैं। पुरुषों में ये मामले अधिक हैं।'

दिल्ली स्थित हार्ट केयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल कहते हैं, 'किडनी का दिल से भी सीधा संबंध है। यह स्वस्थ है तो दिल भी स्वस्थ रहेगा। साल में कम से कम एक बार इसकी जांच करानी चाहिए। गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड जांच से भी किडनी संबंधी रोगों के बारे में पता चल जाता है।'

किडनी स्टोन क्यों होता है? हम रोज जो भी भोजन करते हैं, उनमें से पाचन क्रिया के बाद भी कैल्शियम फॉस्फेट जैसे कुछ तत्व बचे रहते हैं, जो गुर्दे में एकत्र होते हैं। इसके सूक्ष्म कण तो मूत्र के जरिये बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कुछ कण नहीं निकल पाते और मिलकर कंकड़ या पेबल जैसे बन जाते हैं। ये कण मूत्र नली में पहुंचकर मूत्र को बाधित करने लगते हैं, इससे दर्द होता है। इलाज में देरी होने पर कई बार मूत्र के साथ रक्त आने लगता है।

प्रमुख कारण

डॉ. दीपिका नितेश शर्मा कहती हैं पथरी के ये कारण हो सकते हैं-

1. पानी कम पीना और यूरिन देर तक रोकना

2. अनियमित दिनचर्या और खानपान

3. यूटीआई इन्फेक्शन भी इसका एक कारण हो सकता है

4. यह रोग आनुवंशिक भी हो सकता है

5. कुछ लोगों को कैल्शियम कार्बोनेट माफिक नहीं आता, इससे भी पथरी बनने लगती है।

उपचार

नोएडा स्थित योगा एंड नेचर केयर सेंटर के

डॉ. आर.एम. गुप्ता के अनुसार, 'रक्त में किसी भी अनावश्यक तत्व को मूत्र के माध्यम से बाहर निकालने की जिम्मेदारी किडनी की होती है। नेचुरोपैथी में स्टीम बाथ, हाइड्रोपैथी व मड थेरेपी के जरिये किडनी स्टोन को गलाने की कोशिश की जाती है।

डॉ. दीपिका कहती हैं, पथरी यदि छोटी और प्राथमिक चरण में हैं तो अधिक पानी पीने से ये मूत्र के साथ बाहर निकल सकती है। शुरुआती दौर में होमयोपैथी व आयुर्वेद से भी इसका इलाज संभव है। स्टोन बड़े होने के बाद सर्जरी से ही इसका उपचार किया जा सकता है।

क्या न करें

गुर्दे की पथरी होने पर दूध या दुग्ध उत्पादों का सेवन कम करें। अचार, चटनी, मांस, मछली, चिकन, जंक फूड का सेवन कम करें। हरी सब्जियां अच्छी तरह धोकर ही इस्तेमाल करें।

बच्चों को घेर रही है पथरी

किडनी स्टोन छोटे बच्चों को भी परेशान कर रहा है। हालांकि यह आम समस्या नहीं है। डॉ. अंशुमान अग्रवाल के अनुसार, उनके पास एक चार महीने के बच्चे का केस आया, जिसकी किडनी के मुंह पर जन्म से ही रुकावट थी। बच्चों में पथरी के कुछ कारण हैं। जैसे अधिक नमक, ओबेसिटी और एंटीबायोटिक्स का अधिक सेवन। भारत में अभी ऐसे कोई आंकड़े नहीं हैं कि बच्चों को यह रोग क्यों हो रहा है। लेकिन खानपान की गड़बड़ी इसका एक बड़ा कारण है। बच्चों में यह रोग कभी-कभी आनुवंशिक भी हो सकता है। विटमिन व प्रोटीन की कमी भी इसका कारण हो सकता है। महानगरों में वर्ष भर में अलग-अलग अस्पतालों में बच्चों के ऐसे सात से आठ मामले तक आ जाते हैं। इससे बचाव के लिए बच्चों को दिन भर में कम से कम 6-7 गिलास पानी अवश्य पिलाएं। अगर उन्हें किडनी स्टोन की समस्या है तो उन्हें नमकीन पेय पदार्र्थो का सेवन कम कराएं। चिकित्सक की सलाह पर बच्चों को कैल्शियम अवश्य दें, क्योंकि खाने में मौजूद कैल्शियम पथरी बनाने वाले ऑक्सेलेट से जुड़कर पथरी को बनने से रोकता है। बच्चों को जंक फूड कम से कम दें और ओबेसिटी से बचाएं।

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Tuesday 5 March 2013

मेहनत से ही मिटेगा मोटापा

शरीर को स्वस्थ रखने में मोटापा एक बड़ी बाधा है। मोटापे के कारण शरीर कई बीमारियों का शिकार बन सकता है, लेकिन कुछ सजगताओं पर अमल कर मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है..

दुनिया भर में मोटापे के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। हाल मे हुए एक अध्ययन के अनुसार शहरी क्षेत्रों में रहने वाले 16 फीसदी भारतीय मोटापे से ग्रस्त हैं। वहीं 39 प्रतिशत भारतीय बॉडी मास इंडेक्स के आकलन के अनुसार मोटापे से ग्रस्त हैं। बीएमआई टेस्ट मोटापे को मापने का एक व्यावहारिक व सटीक तरीका है और इसके जरिये मोटापे और इससे सबधित रोगों का पता लगाया जाता है। आम तौर पर 20 से 25 बीएमआई वाले लोगों को मोटापे से ग्रस्त नहीं माना जाता है। वहीं 25 से अधिक बीएमआई वाले लोगों को मोटापे से ग्रस्त व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जाता है।

कमर के घेरे की माप

मोटापे के आकलन की दूसरी गणना कमर का घेरा या इसकी माप से सबधित है। महिलाओं में कमर की माप अगर 80 सेमी. और पुरुषों में 90 सेमी. से अधिक है, तो ऐसे लोगों में मेटाबॉलिक सिड्रोम या फिर मोटापे से ग्रस्त होने की आशकाएं बढ़ जाती हैं। इस स्थिति में मधुमेह या डाइबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर और दिल का दौरा पड़ने का जोखिम बढ़ जाता है।

मोटापा और रोग

वस्तुत: मोटापा कई रोगों का कारण है। मोटापे के कारण टाइप -2 डाइबिटीज, हाई ब्लडप्रेशर, हृदय धमनी रोग व हार्ट अटैक और स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है।

खान-पान की आदतों में बदलाव

असल में लोगों में मोटापे के बढ़ने के लिए कई कारण उत्तरदायी हैं। सामाजिक व आर्थिक कारण और पश्चिमी जीवन-शैली पर अंधानुकरण अमल करने से लोगों की खान-पान की आदतों में बुनियादी बदलाव हुआ है। डिब्बाबद या पैकेज्ड खाद्य पदार्र्थो, खाना बनाने में तेल का अधिक इस्तेमाल, जंक फूड्स का बढ़ता चलन और शारीरिक परिश्रम के अभाव से मोटापे का प्रकोप समाज के विभिन्न वर्र्गो में बढ़ता जा रहा है।

वजन बढ़ने का पहला लक्षण

मोटापे से ग्रस्त होने का पहला लक्षण उच्च रक्तचाप और हाई कोलेस्ट्रॉल से ग्रस्त होना है। अगर आप व्यायाम व शारीरिक गतिविधियों से दूर रहते हैं, तिस पर धूम्रपान भी करते हैं। यह स्थिति सेहत के लिए खतरे की घटी है। गौरतलब है कि जो लोग हार्ट अटैक और स्ट्रोक की पीड़ा झेल चुके हैं, उनमें से आधे लोगों को पूर्व में इन रोगों के कोई लक्षण प्रकट नहीं हुए थे। इसलिए हार्ट अटैक और स्ट्रोक से सबधित जोखिमों को पहचानना जरूरी है, ताकि इन रोगों से होने वाली मौतों को कम किया जा सके।

जीवन-शैली में बदलाव

जीवन-शैली में सकारात्मक बदलावों जैसे नियमित व्यायाम करने और खान-पान में जंकफूड्स व चिकनाई युक्त आहार से परहेज करने से मोटापे और इससे होने वाले रोगों पर अंकुश लगाया जा सकता है। अगर इन सकारात्मक परिवर्तनों के बावजूद ब्लडप्रेशर या कोलेस्ट्रॉल के बढ़ने की समस्या नियत्रित नहीं हो रही है, तो फिर विशेषज्ञ डॉक्टर के परामर्श से रक्त को पतला करने वाली दवाएं दी जाती हैं।

सकारात्मक सोच का महत्व

बहरहाल आप बच्चे हों या वयस्क, पुरुष हो या महिला आपको प्रतिदिन नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। खान-पान में हरी सब्जियों और फलों को वरीयता दें। इसके अलावा महत्वपूर्ण बात जिंदगी के प्रति सकारात्मक-आशावादी सोच रखने की

है, क्योंकि नकारात्मक सोच तनाव को पैदा करती है और तनाव दिल की सेहत के अलावा आपके सपूर्ण स्वास्थ्य का शत्रु है।

बच्चों में मोटापा

बच्चों में मोटापे का बढ़ना भी इन दिनों गभीर समस्या बन चुका है। इस समस्या के समाधान के लिए अभिभावकों को बच्चों में खान-पान की स्वास्थ्यकर आदतें डालनी चाहिए। बच्चों को गोल-मटोल नहींबनाना चाहिए। उनके टेलीविजन देखने के घटों को सीमित करें और उन्हें व्यायाम करने के लिए प्रेरित करें। साथ ही जंक फूड्स से बच्चों को दूर करने के लिए प्रेरित करें।

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Monday 4 March 2013

पोलियो के कारण एवं लक्षण

पोलियो एक संक्रमण है जो जंगली पोलियो वायरस के कारण होता है। पोलियो वायरस 3 प्रकार के होते हैं जो किसी आदमी में संक्रमण का कारण बनते हैं। वे तीनो हैं: प्रकार 1, 2 और 3। इसका संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को फेको -मौखिक मार्ग के द्वारा फैलता है। ज्यादातर लोग (लगभग 90% लोग) जब अपने मल बाहर निष्काषित करते हैं तो उनके मल वायरस से संक्रमित रहते हैं लेकिन वे व्यक्ति खुद बीमार नहीं रहते हैं। जब इसका संक्रमण होता है तो 5-10% लोगों में इसके लक्षण उभरते हैं। अधिकांश रोगी सड़न रोकनेवाला मैनिंजाइटिस, हल्के बुखार, गले में ख़राश, पेट दर्द और उल्टी से पीड़ित होते हैं। संक्रमित लोगों में पोलियो के कारण लकवा कम से कम 1% में होता

पोलियो बहुत ही संक्रामक रोग है जो कि पोलियो विषाणु से छोटे बच्‍चों मे होता है। जिस अंग में यह बीमारी होती है वह काम करना बंद कर देता है। यह एक लाइलाज बीमारी है।



पोलियो की गंभीरता इसके लक्षणों पर आधारित रहती  है:
स्पर्शोन्मुख  : ज्यादातर लोग (लगभग  (90% लोग , जो पोलियो वायरस से संक्रमित रहते हैं वे  स्पर्शोन्मुख या बीमार नहीं रहते।   अध्ययन के अनुसार स्पर्शोन्मुख बीमारी और लकवे की बीमारी के बीच का अनुपात  50-1000:1 होता है (सामान्य 200:1 होता है)

मामूली, गैर विशिष्ट: लगभग 4% से 8% लोगों को  मामूली या गैर विशिष्ट बीमारी होती है। इसके  लक्षण अन्य वायरल बीमारियों से अप्रभेद्य हो सकते हैं







 जिनका वर्गीकरण निम्न  रूप में किया जा सकता है:

  •      ऊपरी श्वास पथ में संक्रमण: इस प्रकार के मामले में रोगी के गले में ख़राश और बुखार हो सकता है।
  •     गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल संक्रमण :  इस समस्या में  मिचली, उल्टी, पेट दर्द और कभी कभी  कब्ज या दस्त के लक्षण दिख सकते हैं।
  •     फ्लू जैसी बीमारी हो सकती है।

निम्न प्रकार के रोगी आमतौर पर एक सप्ताह में ठीक हो जाते हैं आर ऐसे लोगों का  केंद्रीय तंत्रिका तंत्र प्रभावित या संक्रमित होने से बच जाता है।


एसेप्टिक मेनिन्गितिस जो लकवाग्रस्त नहीं हैं: : लगभग  1 से 2% रोगियों बिना लकवा के एसेप्टिक मेनिन्गितिस से ग्रस्त होते हैं।  मरीज को शुरू में गैर विशिष्ट प्रोड्रोम हो सकता है उसके बाद  गर्दन, पीठ या पैरों में जकड़न हो सकता है। ये सब  लक्षण 2 से 10 दिनों तक रह सकते हैं उसके बाद मरीज को पूरी तरह आराम मिल जाता है।

झूलता हुआ पक्षाघात:  पोलियो संक्रमण के रोगियों में से सिर्फ  <1% हीं फ्लेसीड पक्षाघात के शिकार होते हैं।  शुरुआत में  मरीज को गैर विशिष्ट प्रोड्रोमल लक्षण हो सकते हैं जिनके बाद पक्षाघात के लक्षण उभरने लगते हैं।  पक्षाघात आम तौर पर 2 से अधिक 3 दिनों तक प्रगति करता जाता है और एक बार बुखार नियंत्रित हो जाने पर वह स्थिर हो जाता है। पक्षाघात पोलियो के साथ रोगियों में;
पारालाईटिक   पोलिओ के लगभग  50% रोगी पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं और फिर उनमें किसी भी तरह का अवशिष्ट लकवा का अंश नहीं रह जाता।
लगभग 25% रोगियों में  हल्के रूप का स्थायी पक्षाघात और विकलांगता हो सकता है।
और लगभग 25% रोगियों को गंभीर रूप से स्थायी विकलांगता और  पक्षाघात हो सकता है।

झोले के मारे पोलियो से ग्रस्त बच्चों की मृत्यु  की दर 2% से 5% के बीच में रहती है। वयस्कों में मृत्यु दर बहुत अधिक रहती  है जो 15% से  30% तक जा सकती है


भारतीय बोझ

ज्यादा दिन पहले की बात नहीं है, 1998 को हीं ले लीजिये; उस समय तक दुनिया भर में 125 से भी ज्यादा देश पोलियो के लिए स्थानिकमारी वाले देश थे यानि वहां पोलिओ के मरीज पाए जाते थे।  इस अवधि में 1000 से भी अधिक बच्चे रोजाना पक्षाघात के शिकार होते रहते थे।  लेकिन उसके बाद व्यापक रूप से पोलियो उन्मूलन का कार्य चलता रहा जिसकी वजह से लगभग 100 से भी अधिक देशों में पोलिओ के संचरण को बाधित कर दिया गया यानि कि इसके फैलने पर नियंत्रण पा लिया गया।   2004 के मध्य से केवल छह देशों में हीं जंगली पोलिओ रह गया। वे छह देश हैं:  नाइजीरिया, पाकिस्तान, भारत, नाइजर, अफगानिस्तान और मिस्र।

हालांकि भारत से पोलियो उन्मूलन के कई उपाय किये गए हैं फिर भी यह कई जगह विराजमान है। भारत में पोलियो के ज्यादातर मामले उत्तर प्रदेश और बिहार में पाए जाते हैं।
अक्टूबर 2009  तक उत्तर प्रदेश और बिहार से पोलिओ के 464 मामले प्रकाश में आये थे।  उत्तर प्रदेश के 80% मामले पश्चिमी भाग के 10 जिलों पाए गए थे और बिहार के कोसी नदी के पास वाले क्षेत्रों में से ( 6 जिलों में से) 85% मामले पाए गए थे।
वर्तमान में  भारत में पोलियो के सबसे ज्यादा  कारण टाइप 1 और टाइप 3 वायरस के कारण होते हैं।  । 2009 में, पोलियो के ज्यादातर मामले (66 प्रतिशत पोलिओ के मामले )  दो साल से कम उम्र के बच्चों में पाए गए।

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Sunday 3 March 2013

फल-सब्जियां बचाएंगी कैंसर से


रविशंकर तिवारी/एसएनबी नई दिल्ली। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने कुछ रोग प्रतिरोधक शाक-सब्जियां विकसित की हैं। इन सब्जियों के सेवन से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी होने की आशंका कम होती है। साथ ही यदि बीमारी हो गई है तो उससे लड़ने की क्षमता भी इनमें है। दो वर्ष पूर्व गोभी और गाजर की इन खास किस्म को परीक्षण के बाद अब किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। उत्तर भारत के मैदानी व पहाड़ी इलाकों में बेहतर खेती की उम्मीद जताई जा रही है। रंगीन शाक-सब्जियां सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं। इनकी गुणवत्ता को और बेहतर बनाने के लिए पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने गाजर व गोभी की कुछ नई प्रजातियां विकसित की हैं, जो कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को रोकने में मददगार साबित हो सकती हैं।

पूसा ने हाल ही में गाजर की चार वेरायटी, पूसा असीता, पूसा रुधिरा, पूसा यमदागिनी और पूसा नवज्योति विकसित की है, जिनमें एंटी कैंसर ड्रग्स तत्व की बहुलता है। इसके अलावा गोभी की कुछ प्रजातियां जैसे पूसा ब्रोकली केटीएस-1, पूसा शरद, पूसा सुक्ति, पूसा स्नोबॉल के-1 व पूसा स्नोबॉल केटी-25 है। कैंसर प्रतिरोधक इन सब्जियों की खेती उत्तर भारत के किसानों ने शुरू कर दिया है। औषधीय उपयोगिता को देखते हुए कुछ लोग किचन गार्डन में भी गाजर व गोभी उगा रहे हैं। वि बाजार में भी इसकी मांग हैं। शाक-सब्जी विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रीतम कालिया ने बताया कि लाल, नारंगी और काले रंग की गाजर को विकसित किया गया है।

काले रंग की गाजर (पूसा असीता) में प्रचुर मात्रा में एंथासाइनीन पाया जाता है, जो शरीर में कोलेस्ट्राल को कम करता है। 100 ग्राम गाजर में 520 मिलीग्राम एंथासाइनीन की मात्रा है। पूसा यामदागिनी और पूसा नवज्योति का रंग नारंगी है, जिसमें बीटा कारोटिन और लाइकोपीन नामक औषधीय तत्व पाए जाते हैं, जो आंख की रोशनी के लिए फायदेमंद होता है। इस गाजर का लगातार सेवन करने वाले को लाइकोपीन नामक तत्व कैंसर से दूर रखता है। उन्होंने बताया कि क्रीम कलर वाले गाजर को विकसित करने के लिए काम चल रहा है। इस गाजर में ल्यूटिन की मात्रा सर्वाधिक होगी, जो एंटी कैंसर के लिए कारगर साबित होगी।

पूसा ने फूल गोभी व बंद गोभी की कुछ प्रजातियां विकसित की हैं, जिसमें ग्लूकोसाइलेट्स नामक तत्व पाए जाते हैं। पकाने के बाद सल्फरोफेन व इंडोथिन कार्बिनोल नामक तत्व की अधिकता हो जाती है। गोभी की इन किस्मों को सर्दी व गर्मी में भी पैदा किया जा सकता है। पूसा ब्रोकली सर्वाइकल कैंसर, फेफड़े का कैंसर, पेट का कैंसर और गले के कैंसर को होने से रोकता है। इसमें कैंसर से लड़ने की क्षमता होती है। पूसा चौलाई (लाल पत्तेदार शाक) और पूसा किरण (हरे पत्तेदार) में भी कैंसर प्रतिरोधक क्षमता है।

पूसा ने विकसित की कैंसर प्रतिरोधक शाक-सब्जियां पर विशेष

SHAKUNTLA NURSING HOME & HOSPITAL : It has become one of the leading referral centre of the city for routine and advanced Medical, Surgical, Dental, Maternity, Orthopedic services and various other procedures. We provide Best hospital in India, Emergency clinic and hospital, Best hospital in Delhi, Maternity center in delhi, Nursing home delhi, Maternity hospital, Fitness hospital and nursing home, Healthcare hospital, Preventive health checkups, Nutrition nursing home , Pregnancy hospital, Maternity nursing home, Medical nursing home, Ultra sound hospital, Orthopedic services & X-ray service hospital.