Thursday 29 November 2012

सर्दी-जुकाम और फ्लू इन्हें करें ऐसे दूर


सर्दियों में सर्दी-जुकाम और फ्लू के मामले कहींज्यादा सामने आते हैं। इस सदर्भ में यह बात जान लेना जरूरी है कि सर्दी-जुकाम और फ्लू क्या हैं? सर्दी-जुकाम (कॉमन कोल्ड) ऐसे लक्षणों का समूह है, जो वाइरल इंफेक्शन के कारण सास नली के ऊपरी भाग को प्रभावित करते हैं।

नाक बहना व इसका बद रहना, खासी, छींकना, गले में खराश और आखों से आसू बहना आदि सर्दी -जुकाम के लक्षण हैं। सर्दी जुकाम के तेज प्रकोप के चलते कुछ लोगों को बुखार और बदन दर्द की शिकायत भी हो सकती है। थकान महसूस करना और भूख कम लगना भी सभव है।

दोनों के बीच फर्क

सर्दी-जुकाम और फ्लू के बीच फर्क यह है कि इनफ्लूएंजा के वाइरस के कारण फ्लू उत्पन्न होता है, लेकिन सर्दी-जुकाम और फ्लू के लक्षण कमोबेश रूप से लगभग एक जैसे होते हैं। इसके बावजूद अगर किसी व्यक्ति को तेज बुखार के साथ मासपेशियों में भी दर्द की शिकायत है, तो फ्लू के होने की आशका से इनकार नहीं किया जा सकता।

रोग का प्रसार

सर्दी-जुकाम और फ्लू का प्रकोप हवा के जरिये पीड़ित व्यक्ति की छीकों से फैलता है। बीमार व्यक्ति की छीकों के सपर्क में आने या फिर नाक से निकलने वाले द्रव के किसी भी प्रकार से सपर्क में आने से यह रोग फैलता है। जैसे रोगी के रूमाल या उसके द्वारा इस्तेमाल की गयी वस्तुओं के सपर्क में आना। अब सवाल यह उठता है कि सर्दियों में ही यह रोग क्यों ज्यादा फैलता है? इसका कारण यह है कि सर्दियों में वाइरस के सूक्ष्म ड्रॉपलेट या तरल कण हवा में एक बार फिर फैल जाते हैं। इस प्रकार ये वाइरस हवा में तेजी से फैलते है और कहींज्यादा वक्त तक हवा में मौजूद रहते हैं। इससे सक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

इस रोग के प्रसार का दूसरा कारण यह है कि नाक का आतरिक भाग सर्दियों के मौसम में शुष्क हो जाता है। इस स्थिति मे नाक का सुरक्षा आवरण कमजोर हो जाता है। नाक में एलर्जी की समस्या से ग्रस्त व्यक्तियों को सर्दी-जुकाम और फ्लू का सक्रमण होने की आशकाएं ज्यादा होती हैं।

रोकथाम

-शरीर के रोग-प्रतिरोधक तत्र को सशक्त बनाकर सर्दी-जुकाम और फ्लू आदि बीमारियों से बचाव किया जा सकता है।

-शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को सतुलित व पौष्टिक भोजन ग्रहण कर बढ़ाया जा सकता है।

-एंटीऑक्सीडेंट्स युक्त खाद्य पदार्र्थो को खान-पान में वरीयता दें। फलों व सब्जियों में एंटीऑक्सीडेंट्स पर्याप्त मात्रा में पाये जाते हैं।

-अत्यधिक वसायुक्त व चिकनाईयुक्त खाद्य पदार्थ कभी-कभार ही लें। इनसे परहेज करना बेहतर है।

-डॉक्टर के परामर्श से विटामिस व मिनरल्स की टैब्लेट्स भी ले सकते हैं, लेकिन याद रखें, ये सप्लीमेंट पौष्टिक-सतुलित खान-पान का विकल्प नहीं हैं।

-किसी भी खाद्य पदार्थ को खाने से पहले साबुन से अच्छी तरह हाथ साफ करें।

-तापक्रम में अचानक परिवर्तन वाली स्थिति से बचें। जैसे बद कमरे से अचानक खुली हवा में न आएं।

इलाज

-बुखार की स्थिति में पैरासीटामॉल की टैब्लेट लें।

-शरीर में दर्द व खासी आदि अन्य लक्षणों के प्रकट होने पर डॉक्टर के परामर्श से दवाएं ली जा सकती हैं।

-पर्याप्त विश्राम करें।

-पर्याप्त मात्रा में पानी व तरल पदार्थ ग्रहण करें।


सर्दियों का मौसम आते ही अस्पतालों या डॉक्टरों की केबिन में गर्दन या कमर दर्द की समस्या से ग्रस्त लोगों की सख्या काफी बढ़ जाती है। इसका कारण यह है कि सर्दियों के कारण मासपेशियों और रीढ़ की हड्डियों के जोड़ों (ज्वाइंट्स) में सिकुड़न होने से अन्य मौसमों की तुलना में उपर्युक्त स्वास्थ्य समस्या इस मौसम में कहींज्यादा बढ़ जाती है।

हालाकि ऐसे रोगियों को मामूली दवाओं और कुछ व्यायाम करने से राहत तो मिल जाती है, लेकिन सभी रोगी इतने भाग्यशाली नहीं होते। लबे समय तक दर्द के प्रति लापरवाही और गलत जीवनशैली रोगियों को स्पाइनल अर्थराइटिस के सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर देती है, लेकिन इस बीमारी को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए ट्रिपल एस (सेफ स्पाइनल सर्जरी) तकनीक भी ईजाद कर ली गयी है, जो स्पाइनल अर्थराइटिस को सफलतापूर्वक मात दे रही है।

कारण

-गलत मुद्राओं (राग पोस्चर्स) में बैठकर कार्य करना। जैसे बैठते, उठते और चलते वक्त रीढ़ की हड्डी को सीधा न रखना।

-लबे समय तक कुर्सी पर बैठकर काम करना।

-काम के कारण अत्यधिक तनाव।

-मोटापे से ग्रस्त होना।

-लबे समय तक सफर करने वाली नौकरी करना, गाड़ी चलाना, टेलीविजन देखना, कंप्यूटर या फिर लैपटॉप पर काम करना

लक्षण

-हाथ-पैर का बार-बार सुन्न होना और इनमें झनझनाहट महसूस करना।

-थोड़ा सा काम करने के बाद थकावट महसूस करना।

-कमजोरी महसूस करना।

-गर्दन में अकड़न होना।

-कमर में लचीलापन कम होना।

क्या है ट्रिपल एस

स्पाइनल सर्जरी के सदर्भ में रोगियों के मध्य कई तरह की भ्रातिया व्याप्त हैं। रोगी अक्सर यह मान बैठते हैं कि स्पाइनल सर्जरी बेहद जटिल होती है और इसमें सफलता भी बेहद कम मिलती है। जबकि चिकित्सा विज्ञान की प्रगति ने इस सर्जरी को बेहद सुरक्षित व कारगर बना दिया है। ट्रिपल एस सर्जरी वह तकनीक है जिसमें बेहद कम चीर-फाड़ और एक सूक्ष्म छेद की मदद से पूरा ऑपरेशन किया जा सकता है। ऑपरेशन के दौरान इंट्राऑपरेटिव, फ्लोरोस्कोपी और सीटी स्कैन की मदद से बेहद सटीक तरीके से इलाज किया जाता है। इस सर्जरी में लेजर का भी इस्तेमाल किया जाता है ताकि सामान्य(नॉर्मल) हड्डी और स्पाइन डिस्क को काटे बगैर हड्डी में सिर्फ एक छेद करके ऑपरेशन किया जा सके। लेजर सर्जरी के अंतर्गत रीढ़ की नसों(न‌र्व्स) के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की जाती। इसलिए नसों के क्षीण होने का खतरा खत्म हो जाता है। इसी तरह हड्डी का मूल ढाचा भी बरकरार रहता है, साथ ही उसमें शक्ति और लचीलापन भी बना रहता है।

इलाज कराएं और घर जाएं

इस सर्जरी के तुरंत बाद रोगी को बिस्तर से उठाकर चलाया जा सकता है। सर्जरी के एक या दो दिनों बाद रोगी को डिसचार्ज कर दिया जाता है। ट्रिपल एस तकनीक से की गयी सर्जरी के बाद रोगी को दोबारा बेल्ट या फिर किसी और वस्तु का सहारा नहीं लेना पड़ता। ऐसा इसलिए, क्योंकि इस सर्जरी के बाद हड्डी का मूल ढाचा बरकरार रहता है।

सीओपीडी को हराना है

सर्दियों के मौसम में क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के मामले बढ़ जाते हैं। देश में इन दिनों लगभग एक करोड़ तीस लाख से अधिक लोग इस रोग के चलते सासों की तकलीफ झेल रहे हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार सीओपीडी विश्व में विभिन्न रोगों (हृदय रोग, स्ट्रोक और कैंसर के बाद ) से होने वाली मौतों का चौथा कारण है।

मुख्य लक्षण व रोग की जटिलता

लगातार खाँसी आना, बलगम आना, साँस में तकलीफ होना। ये लक्षण अधिकतर 40 वर्ष से अधिक के वयस्कों में मिलते हैं जो लम्बे समय तक धूम्रपान कर चुके हैं। धूम्रपान करने से कार्बन के कण सास नली में जमा हो जाते हैं जिससे वहाँ पर सूजन व अवरोध पैदा हो जाता है। इस कारण रोगी को सास लेने में तकलीफ होने लगती है। बीमारी बढ़ जाने पर रोगी को बार-बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है।

इनहेलर्स का इस्तेमाल

चिकित्सा जगत में नये शोध-अध्ययनों से यह साबित हो चुका है कि इनहेलर्स के प्रयोग से सीओपीडी के लक्षणों पर नियन्त्रण रखा जा सकता है। बावजूद इसके यह कड़वा सत्य है कि इस बीमारी को नियत्रित तो किया जा सकता है लेकिन पूर्णतया समाप्त नहीं किया जा सकता। रोगी के लिए यह अति आवश्यक है कि वह धूम्रपान करना तुरन्त छोड़ दे और डॉक्टर की सलाह पर नियमित तौर पर अमल करे।

इस बीमारी में प्रयोग होने वाली दवाएं अब तक गोली, कैप्सूल व इंजेक्शन के रूप में दी जाती थीं, लेकिन अब अच्छी दवाएं इन्हेलर के रूप में प्रयोग की जाती है। डॉक्टर इनहेलर का अपने रोगियों पर इस्तेमाल कराते हैं, जिसमें टायोट्रोपियम, इप्राट्रोपियम, साल्मेट्राल, फार्मेट्राल नामक तत्वों से युक्त दवाएं होती हैं। इनका इस्तेमाल दिन में दो या तीन बार किया जाता है। इनसे बीमारी को काफी हद तक नियत्रित किया जा सकता है।

बीमारी की तीव्रता और इलाज

सीओपीडी में रोगी को सर्दियों में खासकर इसकी शुरुआत में अक्सर फेफड़े में सक्रमण हो जाता है। इस कारण फेफड़े के कार्य करने की क्षमता बहुत कम हो जाती है और रोगी को सास लेने बहुत तकलीफ होती है और शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ता है। इस स्थिति को एक्यूट इक्सासरबेशन (बीमारी की तीव्रता बढ़ जाना) कहते हैं। काफी रोगियों की इस स्थिति में मृत्यु भी हो जाती है। इस रोग का इलाज करने के लिये सास रोग विशेषज्ञ की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में रोगी के लिए बाई पैप नामक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है, जो एक तरह का वेन्टीलेटर होता है और रोगी को सास नली में कृत्रिम नली नहीं लगानी पड़ती है। स्थिति के ज्यादा बिगड़ने पर बड़े वेन्टीलेटर पर भी रखना पड़ता है। अधिकतर मरीजों को वेन्टीलेटर पर नींद आने की दवाएं देना आवश्यक होता है, अन्यथा पीड़ित व्यक्ति को काफी नुकसान होने की सभावना रहती है। अधिकतर रोगी 5 से 6 दिनों में ठीक हो जाते हैं क्योंकि यह स्थिति इन्फेक्शन की वजह से होती है। इसलिए महंगी एन्टीबायोटिक्स देनी पड़ती है। यह एक महंगा इलाज है, क्योंकि इस स्थिति में रोगी को सास लेने में बहुत ज्यादा तकलीफ होती है। वह अपनी नियमित दवाओं का जैसे इन्हेलर व गोलियों का इस्तेमाल नहीं कर पाता है। इस कारण अस्पताल में अधिकतर दवाइया नेबूलाइजर के द्वारा दी जाती हैं, क्योंकि ये दवाएं बहुत तेजी से कारगर होती हैं।

बचाव

इस गंभीर बीमारी से बचने का एक मात्र तरीका है कि लोगों को धूम्रपान नहीं करना चाहिए। इसके अलावा पीड़ित व्यक्ति को वायु प्रदूषण के माहौल से बचना चाहिए। एक बार बीमारी होने पर उसे नियत्रित किया जा सकता है। इन दिनों कुछ वैक्सीन्स उपलब्ध हैं, जिनसे बार-बार होने वाले इन्फेक्शन की तीव्रता को कम किया जा सकता है, लेकिन इन दवाओं का प्रयोग डॉक्टर की सलाह से ही किया जाना चाहिए।



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Tuesday 27 November 2012

मधुमेह से बचाएगी बाजरे की बर्फी


कड़वा होने की वजह से आपने बाजरे की रोटी नहीं खाई है तो कोई बात नहीं। अब आप विविध व्यंजनों के रूप में इसके स्वाद का लुत्फ ले सकते हैं और इसकी कड़वाहट भी आपको परेशान नहीं करेगी। विशेष बात यह है कि अगर आपको मधुमेह व खून की कमी है तो इसके व्यंजन काफी मुफीद साबित होंगे।

बाजरा कड़वा होता है इसलिए लोग खाना कम पंसद करते हैं। मगर वैज्ञानिकों ने बाजरे की खूबियों को देख शोध कर इसे मीठा बना दिया है। वैज्ञानिकों ने बाजरे को विभिन्न खाद्य पदार्थ के तौर पर विकसित कर दिया है, जो कि न सिर्फ स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं, बल्कि स्वादिष्ट भी हैं। हरियाणा के चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी व कृषि विज्ञान केंद्र भिवानी के वैज्ञानिकों ने बाजरे की बर्फी, नमकीन, आटा, लड्डू, पंजीरी, मटर, शक्करपारे, बिस्कुट, केक व इडली तैयार की है। बाजरे की मिठाई में ऊर्जा 350-370 किलो कैलोरी, प्रोटीन 9 से 14 प्रतिशत, खनिज लवण 2 से 3 प्रतिशत व रेशा 1 से 2 प्रतिशत है।

कृषि विज्ञान केंद्र भिवानी से आए डा. अत्तर सिंह की टीम ने पीएयू में बाजरे से बने प्रोडक्ट की प्रदर्शनी लगाई है। डा. अत्तर सिंह के मुताबिक बाजरा एक पौष्टिक अनाज है। बाजरे का आटा पिसवाने के बाद जल्द खराब हो जाता है, लेकिन वैज्ञानिकों ने इसका समाधान निकाल लिया है। यदि बाजरे को आधे मिनट तक उबलते पानी में डालकर निकालें व सूखाकर पिसवाएं तो आटा लंबे समय न खराब व न ही कड़वा होगा। यह बच्चों, बुजुर्गो, लड़कियों, गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं के अलावा मधुमेह, हृदय रोग से पीड़ित लोगों के लिए बहुत लाभकारी है। ये कुपोषण की समस्या दूर करता है। शरीर में खून को बढ़ाता है। ये सर्दियों में ही नहीं, बल्कि गर्मी में भी खाया जा सकता है।


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Monday 26 November 2012

तनाव से कैसे बचें ( Self-help Tips for Depression and Anxiety )

तनाव यानि स्ट्रेस से कई बीमारियाँ होती हैं।  तनाव से मधुमेह रोगियों की स्थिति बिगड़ती है क्योंकि तनाव शुगर लेवल को बढाता है; तनाव से ब्लड प्रेशर बढ़ता है, स्ट्रेस एटेक आता है; सर दर्द होता है एवं अन्य कई गंभीर बीमारियाँ होती हैं। तनावग्रस्त व्यक्ति का मन भी किसी काम को करने में पूरी तरह नहीं लगता एवं वह अपनी क्षमता के अनुसार किसी कार्य को पूरा नहीं कर पाता। अतः तनाव से बचना चाहिए। यहाँ हम तनाव से बचने के कुछ उपाय बता रहे हैं।

अपनी सोच बदलें: कुछ चीजें इंसान के हाथ में नहीं होती मसलन भूकंप  आना, बाढ़  आना, कैंसर जैसे किसी गंभीर बीमारी का शिकार होना इत्यादि। अतः इन बातों के बारे में सोचकर तनावग्रस्त न रहा करें। तनाव में आने से हालात में कोई फर्क नहीं आता लेकिन इंसान की स्थिति और बिगड़ती है। इसलिए जो आपके हाथ में नहीं उनपर ज्यादा न सोचा करें।

जरुरी कार्य को टाले नहीं: जो काम जिस समय पर  ख़त्म  कर लेना है उस  काम को समय के पहले हीं निपटाने का प्रयास करें। टेलीफोन बिल भरने की, बिजली बिल भरने की, प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने की अंतिम तारीख के पहले हीं इन कामों को निपटा लें वरना ज्यों ज्यों अंतिम तारीख निकट आती जाएगी आप तनावग्रस्त होते जायेंगे। और कहीं जो अंतिम तारीख भी आ गई तो हर वक़्त आपको इस बात का स्ट्रेस रहेगा कि पता नहीं वक्क्त रहते काम होगा या नहीं।

अपनी क्षमता से ज्यादा काम न लें: कुछ लोगों को जितना भी काम मिलता जाता है, लालच में लेते जाते हैं। ज्यादा मेहनत करना अच्छी बात है लेकिन अपने हाथ में काम उतना हीं लें जितना आप बिना किसी तनाव में आये समय पर पूरा कर सकें। अपनी क्षमता से ज्यादा ऑर्डर या काम लेने से आप काम करते वक्त तनाव में रहेंगे जिससे आपके साथ साथ आपके घरवाले भी तनाव में रहेंगे जिसका बुरा प्रभाव सब पर पड़ेगा और आपके काम कि क्वालिटी भी ख़राब होगी जिसके चलते आपको अलग से तनाव झेलना होगा।


सिर्फ काम न करें; अपना मन भी बहलायें: आज के ज़माने में घर की जरूरतें पूरी करने के लिए कई लोगों को ज्यादा से ज्यादा काम करने की जरुरत होती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप हर वक़्त सिर्फ काम हीं करते रहें। सिर्फ काम करते रहने से आपकी स्फूर्ति कम होती जाएगी और आपपर तनाव हावी होता जायेगा। इसलिए आप चाहे जितना भी काम करें, कुछ समय के लिए मन बहलाने वाली चीजों में भी मन लगायें। इससे आप तनाव से बचे रहेंगे साथ हीं साथ आपकी कार्य क्षमता भी बढ़ेगी। म्यूजिक सुनें, फ़िल्म देखें, कोई खेल खेलें, दोस्तों या परिवार के साथ या अपने किसी खास दोस्त के साथ गप्पे लड़ाएं या कही घूमने जायें या किसी अन्य गतिविधि में लिप्त हों जिसमें आपका मन लगता हो। 

गाना गुनगुनाएं या नृत्य करें: गाना सुनने से तो तनाव कम होता है, गाना गुनगुनाने से भी तनाव बहुत कम होता है। इसके लिए कोई जरुरी नहीं कि  आपका गला बहुत अच्छा हीं हो। आपकी आवाज सुरीली हो या न हो, अपना पसंदीदा गाना अवश्य गुनगुनाएं। अगर आप अपनी पसंद की म्यूजिक  पर  थोडा बहुत डांस कर सकें तो सोने पे सुहागा। ऐसा करने से आपका तनाव बहुत कम होगा।

व्यायाम, योग या मेडीटेशन करें : नियमित रूप योग, व्यायाम या मेडीटेशन करते रहने से आप तनाव से बचे रहेंगे। 

पर्याप्त नींद लें : स्ट्रेस से बचना है तो आपको पर्याप्त नींद लेनी होगी। अपर्याप्त नींद तनाव के साथ साथ ब्लड शुगर, ब्लड प्रेशर बढाती है एवं कई रोगों को भी जन्म देती है  ।

पानी पीयें: पानी पीने से तनाव बहुत कम होता है अतः जब भी आप तनाव में हों, पानी पीयें। भरपूर पानी पीते रहने से तनाव आपसे दूर हीं रहता है। 

हमेशा दूसरों से मुकाबला न किया करें: कुछ लोगों को हर काम में दूसरों की बराबरी करने की आदत होती है। हर किसी की कार्य करने की क्षमता अलग अलग होती है। अतः आप अपनी क्षमता के अनुसार हीं काम किया करें। दूसरों से मुकाबला करने से बेवजह आपका तनाव बढेगा। मुकाबला वहां करें जहाँ मुकाबला  करने की जरुरत हो; हर समय नहीं।



Self-help Tips for Depression and Anxiety


Many health experts agree that self-help n is the best approach to deal with depression t. However, self-help in such turbulent times may not be the best because the affected person might not be able to think rationally. But, if you’re willing to tone down your worries and get over anxiety, you should know a few thing. So, take a look at the points below and work towards getting yourself out of the depressed state of mind.

Understanding of depression: You must always start with learning and understanding depression. Self-help for depression or anxiety becomes more effective once you know what you are up against. Figure out how the events in your life are making you feel, act and think different. Once you’ve pinned down the reasons you will have to work on how to be less affected by those.

Challenge your thinking to get over problems: When you are seeking a solution to your problems, you must believe that you will be able to overcome the hurdles. If you look at things in a depressive/submissive way, nothing will be of any help to you. You must always try to be an optimist. It is better if you write down the original thought along with all things you can do to help it.

Activities to occupy your mind: Engage in activities, which will prevent you from thinking about your problems. No, we’re not saying that you become an escapist and run away rather than deal with the problem in hand. If you don’t have anything to do all day long, you are bound to think the worst you can. This would make you even more depressed and do more damage than good to your mental health.

Get necessary relaxation during the day: Relaxation helps release tension in order to get you back to a more relaxed state of mind. You have several options to choose from several mind-calming techniques such as meditation, self hypnosis and tai chi.

Duration to solve your problem: If you believe that you are facing a big problem or several problems that can’t be sorted in a day or a week, decide the duration to resolve it. If you strongly believe that you will not be able to do it by yourself, it is advisable to speak to an expert; do not dwell upon it unnecessarily.

Exercise for depression: There is no specific exercise to get rid of depression or anxiety, but involve yourself in as many physical activities as possible; it is for you to decide the kinds you want to engage in. It can be anything from moderate brisk walk to high intensity muscle building or even sports.

Maintaining a healthy lifestyle: To ascertain that your health won’t deteriorate, it is important to eat at the right times (3 meals a day), irrespective of whether you are hungry or not. Moreover, regulate your sleep patterns and do the things that you do usually.

Hope these tips come in handy and you’re able to overcome the depressive state of mind you were dwelling on.


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Saturday 24 November 2012

सर्दियों में चुस्त दुरुस्त रहना हो तो पौष्टिक आहार लें


सर्दियों के मौसम में आपके खाने की वैराइटी बढ़ जाती है साथ ही आपकी पाचन शक्ति भी बढ़ जाती है, इसलिए आप गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में ज्यादा खाना खा लेते हैं तो उसे पचने में कोई समस्या नहीं होती है।लेकिन हैवी डाइट लेने के साथ-साथ यह भी जानना जरुरी है आपके लिए सर्दियों में आप क्या खाएं जिससे आपको स्वाद के साथ पोषण भी मिले। आईए जानें सर्दियों में कैसा हो आपका खान-पान।

नाश्ता जरुरी

सुबह का नाश्ता हमारे लिए जरुरी होता है क्योंकि इसे हमें ऊर्जा मिलती है।नाश्ते में अंडे के साथ ब्रेड, उपमा, सैंडविच, डोसा आदि ले सकते हैं। रोजाना नाश्ते के बाद बिना फैट वाला एक गिलास गर्म दूध लेना न भूलें। इन सबके साथ फ्रूट या वेजीटेबल सलाद भी आप अपने नाश्ते में ले सकते हैं।

हरी चटनी शामिल करें लंच में

दोपहर के भोजन में हरी सब्जी, चपाती, ताजा दही या छाछ, छिलके वाली दाल के साथ चावल, गरमा-गरम सूप ले सकते हैं।
लंच में थोड़ी मात्रा में हरी चटनी का सेवन जरुर करें। इसे भोजन में मल्टीविटामिन्स की कमी  पूरी होगी।

डिनर जल्दी करें

रात का भोजन आपके दोपहर के भोजन की अपेक्षा हल्का होना चाहिए। सर्दियों में रात को आप जल्दी भोजन करने की आदत डालें।
रात को भोजन में आप खिचड़ी या दलिया जैसे हल्के भोजन का सेवन करें। सोने से कम से कम 4 घंटे पहले भोजन करने से शरीर में भोजन का पाचन ठीक से होता है। रात को सोने से पहले हल्दी, अदरक मिले एक गिलास गर्म दूध जरुर लें।

अन्य महत्वपूर्ण बातें


  • सर्दियों में हमें ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होती है , इसलिए ऐसी चीजें खानी चाहिए जो शरीर को गर्म रखने के साथ-साथ हमारे इम्यून सिस्टम को भी ठीक रखें।
  • इस मौसम में प्रोटीन व फाइबर से भरपूर चीजें खानी चाहिए।
  • खाने के साथ प्रोटीनयुक्त ड्राईफ्रूट्स भी ले सकते हैं। जैसे बादाम , अखरोट , काजू , पिस्ता शरीर को देर तक गर्म रखते हैं। बादाम बिना भिगोए नहीं खाएं। इन्हें लेने के बाद ज्यादा देर तक भूख नहीं लगती और संतुष्टि का अहसास होता है। इससे सर्दियों में मोटापे से बचेंगे।
  • खाने में फल और सब्जियों की मात्रा ज्यादा हो। गाजर , मूली , टमाटर जैसी सब्जियां लेनी चाहिए जिनमें ऐंटिऑक्सिडेंट्स होते हैं , जो शरीर से टॉक्सिंस को बाहर निकालने में मदद करते हैं।
  • तिल से बनी चीजों में ओमेगा -3 होता है जिसमें ऐसे फैट होते हैं , जो शरीर को गर्मी देते हैं , लेकिन मोटापा नहीं बढ़ाते।
  • सर्दियों में डीहाइड्रेशन की समस्या भी हो सकती है इसलिए पानी भरपूर पीते रहें।






Conditioning Chamber
Humidity Chamber  
Twist Tester  
Coating Thickness Tester  
Crush Tester 

Friday 23 November 2012

बुढ़ापे को रोकता है कम कैलोरी वाला भोजन


वजन कम करने के लिए व्‍यक्ति को सबसे पहले कैलोरी युक्‍त भोजन से दूर रहने की सलाह दी जाती है। कहा जाता है कि अधिक कैलोरी लेने से वजन में बढ़ता है और यही मोटापा अन्‍य कई बीमारियों को जन्‍म देता है। हाल ही में हुए एक शोध में कम कैलोरी वाले भोजन का एक और गुण सामने आया है। इस शोध के मुताबिक लो कैलोरी वाला भोजन बढ़ती उम्र के प्रभाव को धीमा कर सकता है।

सिएटल के फ्रेड हचिंसन-कैंसर रिसर्च सेंटर ने अध्ययन में पाया कि बेहतर भोजन करने की आदत कई बीमारियों पर काबू भी किया जा सकता है। इस अध्‍ययन में पाया गया कि अगर खानपान की बेहतर आदतें अपनायी जाएं तो कई बड़ी बीमारियों जैसे मधुमेह, कैंसर, डिमेंशिया और हृदय संबंधी परेशानियों को भी दूर रखा जा सकता है।

ब्रिटिश अखबार ‘डेली एक्सप्रेस’ की खबर के अनुसार, अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि बिना बहुत ज्यादा भूख लगे लो कैलोरी वाली चीजें खाने से शरीर के महत्वपूर्ण आंतरिक अंगों की कोशिकाओं के नष्ट होने की गति धीमी हो जाती है। यह उम्र बढ़ने लक्षणों को तो धीमा करता ही है साथ ही लोगों को चुस्त-दुरूस्त और स्वस्थ रखने में भी मदद करता है।



Thursday 22 November 2012

गर्भावस्था के प्रारंभिक लक्षण


कुछ महिलाओं का मानना है, कि उन्‍हें स्‍वयं ही आभास हो जाता है कि वे गर्भवती है। लेकिन बहुत से दूसरे लोग जिनको सहज ज्ञान होता वह अन्य तरीको से बताते है कि कोई महिला गर्भवती है या नहीं।

गर्भावस्था के प्रारंभिक लक्षण हैं :

    स्तनों में पीङा
    स्वभाव में बदलाव या चिढ़चिढापन और थकावट
    मतली और सुबह के समय कमजोरी या ढीलापन जोकि गर्भावस्था के चौथे से आठवें सप्ताह से शुरू होता है 
    मासिक धर्म का बंद होना, योनि स्राव और श्रोणि में ऐंठन की स्थिति में बदलाव आता है।
    सुबह के समय कमजोरी या ढीली तबियत

क्रोनिक गोनाडोट्रोपिन हार्मोन के कारण सुबह के समय आपकी तबियत ढीली पड़ सकती है। इस हार्मोन के स्तर में आमतौर पर तेजी से कमी गर्भावस्था की अवधि बढने के बाद होती है(12 से 14 सप्ताह की गर्भावस्था), और मतली आम तौर पर दूसरी तिमाही के आरंभ में ही गायब हो जाती है या आना बंद हो जाती है।


दिल्ली आधारित स्त्रीरोग विशेषज्ञ, डॉक्टर अल्का लाल के अनुसार, "महिलाएं आमतौर पर संकेतो से आसानी से पता लगा सकती है जैसे मासिक धर्म का न होना, बार बार पैशाव आना, सुबह के समय तबियत का ढीला होना, थकान, स्तनो में बदलाव, और त्वचा में परिवर्तन। यह गर्भावस्था के पता लगाने के बहुत अच्छे संकेत है।" 

याद रखने की बात यह है कि इन लक्षणो मे से कोई एक भी गर्भावस्था के अलावा अन्य मामलो में कारण हो सकते है, तो वे विश्वसनीय और आसान नही है, लेकिन वे एक बहुत अच्छे संकेत है जोकि इस योग्य हो सकते है कि संदेह होने पर आप घर पर गर्भावस्था परिक्षण किट खरीद कर जांच कर सकते है या अपने स्त्रीरोग विशेषज्ञ से बात करें।


Tuesday 20 November 2012

सीने की चोट हो सकती है जानलेवा ( Chest Injuries )

सड़क हादसों और अन्य दुर्घटनाओं के बढ़ने के कारण इन दिनों सीने में चोट के मामले तेजी से बढ़त पर हैं। ऐसे मामले उस वक्त काफी गभीर हो जाते हैं, जब हादसों के कारण फेफड़े विकारग्रस्त हो जाते हैं। अगर ऐसी चोटों से ग्रस्त लोगों का शीघ्र ही विशेषज्ञ डॉक्टरों की निगरानी में इलाज कराया जाए, तो इन मामलों में अधिकतर रोगियों की जान बचायी जा सकती है..

आधुनिक युग में सड़कों पर वाहनों का अत्यधिक जमाव और वाहन चलाते वक्त लापरवाही बरतने से सीने या छाती की चोटों की सख्या में वृद्धि हो रही है। इसके अलावा ज्यादातर अस्पतालों में छाती चोट के सही इलाज की सुविधा का अभाव होना ऐसी चोट से घायल व्यक्ति की जान जाने का कारण बन जाता है। सच तो यह है कि छाती की चोटों में लगभग 75 प्रतिशत लोगों की जान बचायी जा सकती है, पर घायल व्यक्ति के रिश्तेदारों की अज्ञानता व छाती चोट को लेकर उनकी समझ छाती चोट से घायल व्यक्ति को मौत के मुंह में धकेल देती है।

चोट की गभीरता को समझें

लोग यह नहीं समझते कि छाती चोट में पसली टूटने पर छाती के अंदर स्थित फेफड़ा भी जख्मी हो जाता है जख्मी फेफड़े के मामले में इलाज की लापरवाही से जानलेवा जटिलताएं उत्पन्न हो जाती है और घायल व्यक्ति की जान जाने में देर नहीं लगती। अक्सर होता यह है कि पसली के फ्रैक्चर व उसमें होने वाले दर्द पर सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया जाता है और उसी का इलाज चलता रहता है और घायल फेफडे़ को नजरअंदाज कर दिया जाता है। इसलिए घायल व्यक्ति के परिजनों को चाहिए कि छाती की चोट लगने पर उसे गभीरता से लें और शुरुआती दिनों में ही किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन की निगरानी में इलाज कराएं।

चोट लगने पर क्या करे

परिवार वालों को चाहिए कि समय व्यर्थ किये बगैर वे पीड़ित व्यक्ति को बड़े शहरों के अस्पतालों में ले जायें जहा पर एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन यानी चेस्ट सर्जन और क्रिटिकल केयर विभाग की उपलब्धता हो। लोग अक्सर ऐसी परिस्थितियों में रोगियों को छोटे प्राथमिक सेवा केन्द्रों व छोटे अस्पतालों में ले जाते है और वहा प्राथमिक उपचार दिलवाने का प्रयास करते है और इन सब में कीमती वक्त नष्ट हो जाता है।

इलाज न कराएं तो क्या होगा

छाती चोट में फेफड़े के जख्मी होने से छाती के अंदर हवा भर जाती है,जो फेफड़े को दबा देती है। इस कारण फेफड़ा फूल नहीं पाता जिससे मरीज की सास फूलने लगती है और इलाज के बगैर रोगी की मौत हो जाती है। इसके अलावा हवा के साथ-साथ छाती के अंदर फेफड़े के चारों ओर रक्त का जमाव हो जाता है और फेफड़ा दबाव के कारण पूरा फूल नहीं पाता। इस स्थिति में तब मरीज की हालत बिगड़ने लगती है और सही इलाज के अभाव में उसकी मौत हो जाती है। छाती में खून भर जाने से एक तो शरीर में रक्त की मात्रा कम हो जाती है तो दूसरी तरफ फेफड़े के सही काम न करने के कारण रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है।

इलाज की प्रक्रिया

छाती चोट के अधिकतर मामलों में छाती में नली डालकर उसके अंदर एकत्र हुआ रक्त व हवा निकाल दी जाती है। नतीजतन फेफड़े पर दबाव कम होने लगता है और वह धीरे-धीरे फूलना शुरू कर देता है। अगर फेफड़ा ज्यादा जख्मी नहीं है, तो वह अपनी पूर्व स्थिति में पुन: लौटने में एक हफ्ते से ज्यादा समय नहीं लगायेगा। अगर फेफड़ा क्षतविक्षत हो चुका है तो सर्जरी की जरूरत पड़ जाती है। नष्ट हुए फेफड़े के भाग को निकालना पड़ता है। कभी-कभी छाती व पेट के बीच स्थित दीवार छाती चोट से फट जाती है, जिसके परिणामस्वरूप आतें, छाती में प्रवेश कर जाती है और फेफड़े को दबा देती है। यह स्थिति बड़ी भयावह होती है। इसमें तुरन्त ऑपरेशन की आवश्यकता होती है। कभी-कभी छाती चोट में अगर अनियत्रित रूप से रक्तस्राव होता है, तो तुरन्त सीने की सर्जरी कर इस पर नियत्रण करना पड़ता है।




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Saturday 17 November 2012

हंसी में मर्ज उड़ जाए ( Laughter: Good For Your Health )

आप प्रतिदिन दो-तीन बार खुलकर हंसती हैं। यदि ऐसा नहीं है तो ऐसा करना शुरू कर दीजिए। जर्मनी में हुए एक अध्ययन के अनुसार हंसने से आप कैंसर और हृदय संबंधी रोगों से बची रह सकती हैं। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार हंसने से रक्त में रोग प्रतिरोधक क्षमता की बढ़ोत्तरी होती है।

जर्मनी के 'ह्यूमर केयर' संस्थान के अध्यक्ष मिशेल का कहना है कि हंसने से शरीर के सभी अंगों को आराम मिलता है और रक्त संचार में भी इसका सकारात्मक असर देखा जाता है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार हंसने से तनाव पैदा करने वाले हार्मोन के स्तर में कमी आती है। इससे कई बीमारियों से शरीर की रक्षा होती है। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि हंसने से तनाव के साथ आंखें और मस्तिष्क की भावनात्मक क्रिया पर सकारात्मक असर पड़ता है। हंसने से एक ओर जहां कई बीमारियों से शरीर की रक्षा होती है, वहीं इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे तनाव भी दूर होता है।


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Monday 12 November 2012

दिवाली मनाये सेहत के साथ

त्योहारों के मौसम में सेहत पर असर पड़ना स्वाभाविक है। ऐसे में आपको अपनी सेहत का खास ख्याल रखने की जरूरत है। खासतौर पर दिवाली के मौके पर। दिवाली की मिठाईया सेहत की दुश्मन हो सकती है। रोशनी के पर्व में हर व्यक्ति अपनी और अपने परिवार की सेहत की कामना करता है। ऐसे में आपको थोडी सी सावधानी रखने की भी जरूरत है। आजकल मुनाफाखोर लोग स्वार्थ वश अधिक से अधिक मुनाफा कमाने के कारण दिवाली की मिठाईयों में मिलावट करने लगे हैं जो आपके स्वास्थ्य के लिए न सिर्फ हानिकारक है बल्कि आपको कई बीमारियों का शिकार भी बना सकती है। आइए जानें कैसे आप दिवाली मनाये सेहत के साथ।

-दिवाली के अवसर पर न सिर्फ दिवाली की मिठाईयों में बल्कि खाने-पीने की चीजें जैसे पनीर, दूध, खोया इत्यादि में भी मिलावट हो सकती है। इसीलिए आप इनको खरीदते समय खास सावधानी बरतें और ऐसे खाघ पदार्थ पैकिंग वाले ही लें और इनकी एक्सपायरी जरूर चेक करें। इससे आप मिलावटी सामान लेने से बच जाएंगे।

-दिवाली के मौके पर खूब मिठाई, चॉकलेट और पकवान इत्यादि खाने से शरीर का वजन बेवजह बढ़ जाता है। जो कि आपके स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। ऐसे में आपको त्योहार के समय में भी अपने खान-पान पर नियंत्रण रखने की जरूरत है।

-दिवाली पर फिट रहने के लिए और त्योहार पर एन्जॉय करने के लिए आपको संतुलित आहार लेना चाहिए। इसके तहत आप बीच-बीच में हार्ड ड्रिंक, कोक इत्यादि न लेकर जूस ले सकते हैं। चाहे तो आप सब्जियों का जूस भी ले सकते हैं, ये हेल्दी और स्वादिष्ट होता है।

-दिवाली के दिनों में फिट रहने के लिए आप एकसाथ भरपेट न खाएं बल्कि थोड़ी-थोड़ी देर के अंतराल में खाते रहें।

त्योहार के समय में साधारण खाने के बजाय आप पकवान अधिक बनाते है। ऐसे में आप आटे में जौ, बाजरे के आटे को गेहूं के आटे के साथ मिक्स कर लें, ये हेल्दी भी होगा और आपको फिट भी रखेगा।

-आप दिवाली के त्योहार पर तरोताजा रहने के लिए सुबह खाली पेट नींबू पानी लें, इससे आपके शरीर में विषैले तत्व भी आसानी से निकल जाएंगे।

-आप खाने में सलाद, फल इत्यादि लें इससे आपकी डायट भी बैलेंस रहेगी और आपकी सेहत भी नहीं बिगड़ेगी।

-दिवाली जैसे त्याहारों के समय में आप कई बीमारियों जैसे लीवर प्रॉब्लम्स , किडनी प्रॉब्लम, सास लेने में तकलीफ, बिंज ईटिंग यानी लगातार खाने-पीने की वजह से शरीर के अंगों पर पड़ने वाले दबाव इत्यादि की समस्याओं से घिर जाते हैं। इसके अलावा आपको गैस्ट्रिक प्रॉब्लम, शुगर और कॉलेस्ट्रॉल बढ़ने की समस्या , खाना पचाने में मुश्किल, वजन बढ़ने की समस्याएं इत्यादि हो जाती हैं। इन सबसे बचने के लिए आपको अपनी भूख और हेल्थ के हिसाब से ही खाना चाहिए।

यदि आप त्योहारों के मौके पर अधिक ड्रायफ्रूट्स लेते हैं और साथ ही एल्कोहल, धूम्रपान इत्यादि करते हैं तो भी आपकी सेहत बिगड़ने की आशकाएं बढ़ जाती है। ऐसे में आपको इन चीजों के सेवन से बचना चाहिए।

-आपको त्याहारों के समय चाय, कॉफी इत्यादि का सेवन कम करना चाहिए और ग्रीन टी इत्यादि का सेवन करना लाभकारी होता है।

-मिलावटी पदार्थ स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हो सकते हैं। यह लीवर, गुर्दे सहित अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। मिठाईयों में प्रयुक्त होने वाले रंग में बेहद खतरनाक केमिकल होते हैं। यह शरीर के अंगों को स्थाई रूप से नुकसान पहुंचा सकते हैं। ऐसे में आप सावधानी बरतकर ही फिट रह सकते हैं।

Wednesday 7 November 2012

सर्दियों में सेहत की देखभाल


जाड़े के मौसम को आम तौर पर स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार इस मौसम में जठराग्नि प्रबल होती है। भोजन ठीक से पचता है और शरीर में 'धातु निर्माण' अच्छा होता है।

रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाएं

जो लोग अपनी रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें सर्दियों में पौष्टिक भोजन अपनी पाचन शक्ति के अनुसार करना चाहिए। गाजर, शलजम, मूली, लौकी, पालक, मेथी, बथुआ आदि को आहार में स्थान देने और इनका सूप बनाकर पीने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसके अलावा बादाम, अखरोट, खजूर व किशमिश का सेवन दूध के साथ करने से भी हमारे शरीर का रोग प्रतिरोधक तत्र मजबूत होता है। गाजर, चुकंदर, आवला व पालक के जूस में पुदीने के रस को डालकर दिन में पीने से शरीर में पर्याप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट्स प्राप्त होते हैं। ये एंटी-ऑक्सीडेंट्स शरीर को विभिन्न रोगों से बचाते हैं।

मौसम का दूसरा पहलू

अपनी अनेक खामियों के साथ सर्दियों का मौसम बच्चों, बुजुर्र्गो और कमजोर लोगों के लिए तकलीफें भी पैदा करता है। इसी तरह उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, दमा व जोड़ों के दर्द से पीड़ित लोगों के लिए भी यह मौसम चुनौतिया पैदा करता है। ऐसे लोगों को इस मौसम में अपने चिकित्सक से परामर्श लेकर खान-पान और सेहत सबधी अन्य बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

जोड़ों के दर्द, कमर दर्द, गर्दन दर्द और मासपेशियों में दर्द की शिकायत से ग्रस्त लोगों को नियमित रूप से पूरे शरीर में गुनगुने तिल के तेल से मालिश करनी चाहिए। इसके अलावा सौंठ व मेथी का बराबर मात्रा में चूर्ण बनाकर इस मिश्रण में से एक-एक चम्मच सुबह व शाम सेवन करना चाहिए।

उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों को योगासन, सुबह की सैर और हल्का व्यायाम करना चाहिए। नित्य एक चम्मच लहसुन का रस, एक चम्मच प्याज का रस और एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें। प्रात:काल एक कप पानी में अर्जुन की छाल उबालकर छानकर पिएं।

सास सबधी रोग

जो लोग खासी, नजला, एलर्जी व सास से सबधित रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें गर्म जल से स्नान करना चाहिए। ऐसे लोगों को अदरक, लहसुन, अजवायन डालकर सब्जियों के सूप पीने चाहिए। हर दिन च्यवनप्राश का सेवन करना भी हितकर है। कमजोर लोगों, बच्चों व वृद्धों को हर रोज सुबह-शाम शहद का सेवन करना चाहिए।

Tuesday 6 November 2012

लड़कियों के लिए वजन बढ़ाने के व्यायाम


लड़कियों में वजन घटाने और हर समय पतले रहने के बारे में जोरदार माँग को देखते हुए, लड़कियों के लिए वजन बढ़ाने के व्यायाम थोडी सी आश्चर्य की बात लगती हैं। खैर, यह उन लड़कियों के लिए जो बहुत दुबलीपतली हैं और कुछ वजन और सौंदर्य़ पाने की चाह रखती हैं। यहाँ लड़कियों के लिए कुछ वजन बढ़ाने के व्यायाम दिये हैं:

व्यायाम:
  • पतली लड़कियों के लिए वजन बढ़ाने की तकनीक में सिफारिश किया जाने वाला शीर्षासन यह सबसे आम योग हैं। यह अक्सर अतिसक्रिय शरीर को आराम देने में मदद करता है। यह आसन पाचन तंत्र को भी बढ़ाता है और मांसपेशियों की लोच बढ़ता है।
  • योग थॉयराइड की समस्याओं के लिए बेहद फायदेमंद है। इसलिए, स्वास्थ्य देखभाल चिकित्सक भी मत्स्यासन या मछली मुद्रा की सलाह देते है, जो पेट की मांसपेशियों को व्यायाम देता है और शरीर में शरीर में पोषण अवशोषण कई गुना में बढ़ जाता हैं।
  • मुक्त वजन अभ्यास एक पेशेवर ट्रेनर के मार्गदर्शन के अंतर्गत किये जा सकते है। यह मांसपेशीयों के फाइबर को उत्तेजित करते हैं।



याद रखने के कुछ मुद्दे:
  • यह सब सही खाने पर निर्भर है। हालांकि इसका मतलब यह नहीं कि आप कुछ भी खाते रहे। एक औरत के शरीर की बनावट और मांसपेशी घनत्व एक आदमी से अलग होता हैं। इसलिए,  एक महिला के वजन बढ़ाने के बारे में पूरे विचार को बहुत सारी योजना और परामर्श की जरूरत होती है। सबसे पहले, एक महिला को उसके पतले होने के कारण का पता लगाने के लिए उसके थॉयराईड के परीक्षण के साथ साथ शरीर में हार्मोन के स्तर की जाँच करानी चाहिए।
  • लड़कियां वजन प्रशिक्षण सत्र के विकल्प भी चुन सकती हैं। उसे मांसपेशियों के निर्माण या एक निर्धारित अवधि के बाद या मर्दाना दिखने के बारे में परेशान नहीं होना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक महिला का शरीर मांसपेशी फाइबर के निर्माण और पुनर्निर्माण में मदद करने वाले टेस्टोस्टेरोन के उच्च स्तर से संपन्न नहीं होता है। इसलिए, मांसपेशियों का प्रशिक्षण आपको मर्दाना बनाने की संभावना शून्य होती है।
  • हमेशा एक पेशेवर जिम प्रशिक्षक के कडे मार्गदर्शन के तहत वजन बढ़ाने के व्यायाम करें। व्यायाम के सेट के दोहराव की आवश्यकता होती है, जो व्यक्तिगत शरीर के प्रकार के अनुसार बदलते रहते हैं। कई लड़कियां जिम में बहुत पैसे खर्च करती हैं, लेकिन कोई परिणाम नहीं दिखता, क्योंकि उनको अपने शरीर के लिए क्या सही है और क्या नहीं इसके बारे में जानकारी नहीं होती।

  • एक समय में आपके शरीर के एक क्षेत्र के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करे और क्षेत्र तय करे। यह पैर, कमर, कंधे, या पेट, हो सकता हैं, अपने शरीर के प्रत्येक भाग को व्यायाम मिल रहा हैं, यह सुनिश्चित करें। जब तक आपको असुविधा ना हो तब तक अपनी माँसपेशियों पर जोर डालाना और मांसपेशियों का निर्माण जारी रखना यह कुंजी है।
  • नियमित कार्डियो व्यायाम से बचें, क्योंकि वह एक लड़की के शरीर प्रकार के मामले में तेजी से कैलोरी जलाते हैं।
  • अपने आहार में प्रोटीन शामिल करें। यह आपकी शरीर के कैलोरी के हानि की क्षतिपूर्ति और मांसपेशियों के निर्माण में मदद करेंगे। पनीर, मक्खन, शहद और अंडे जैसे खाद्य पदार्थ लड़कियों के वजन बढ़ाने में काफी मदद करते हैं। तो आगे बढ़े! अपने सलाद में अतिरिक्त चीज की मात्रा जोड़ें। आप अपने आहार में अधिक मात्रा में फलों के रस, पौष्टिक शेक और सोडा खुराकों को शामिल कर सकते हैं।
  • उच्च रूप में कोलेस्ट्रॉल युक्त खाद्यपदार्थों से बचें, क्योंकि इनकी व्यायाम दिनचर्या को अप्रभावी बनाने की प्रवृत्ती होती हैं।आगे चलकर  कोलेस्ट्रॉल की हृदय की धमनियों में संकुचन लाने की भी प्रवृत्ति है।
  • व्यायाम करते वक्त पानी पिये। ऊतकों और त्वचा का बहुत पसीना निकलता हैं और शरीर को उस समय के दौरान पृष्ठ रहने की जरूरत होती है।

  • लड़कियों के लिए वजन बढ़ाने के व्यायाम शुरु करने से पहले एक पोषण विशेषज्ञ या प्रमाणित आहार विशेषज्ञ से परामर्श लेना हमेशा बेहतर रहता हैं।
  • मांसपेशियों के निर्माण पर अधिक ध्यान दें। प्रत्येक व्यायाम के लिए समय समर्पित करे और हर दूसरे सेट को दोहराएँ। वजन बढ़ाने के नियमों में यह सबसे अधिक पालन किये जाने वाला नियम हैं।
  • वजन बढ़ाने के लिए आप विभिन्न योग तकनीकों की कोशिश भी कर सकते हैं।

Monday 5 November 2012

सर्दियों में स्‍वास्‍थ्‍य की देखभाल


सर्दियां शुरू हो चुकी हैं। इस मौसम में आमतौर पर सभी को अपना खास ध्यान रखने की जरूरत होती है, लेकिन अस्थमा, गठिया और हृदय रोग के मरीजों को विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती है। इन रोगों से पीडि़तों को अपने खानपान का खास ध्यान रखना चाहिए। उन्हें विटामिनयुक्त फलों और सब्जियों का नियमित सेवन करना चाहिए। डाक्टरों के मुताबिक सर्दियों के दौरान लोग सुबह गर्म रजाई छोड़ते समय बाहर के मौसम का अनुमान किए बगैर बाहर निकल आते हैं। तापमान में बदलाव के कारण निमोनिया और कई मौजूदा मर्ज जैसे घुटनों में दर्द, गठिया, सीने में संक्रमण जैसी बीमारियां बढ़ जाती है।

ऐसे में कुछ खास बातों का रखें ध्यान :
  • सिर और मुंह को ढकने के लिए मफलर का प्रयोग करें। सिर पर टोपी लगाकर घर से निकलें।
  • कार में बैठने से पहले ब्लोअर चला लें ताकि उसमें बैठने पर ठंड न लगे। अगर आप किसी ठंड की बीमारी से पीडि़त हैं तो घर को गर्म रखें।
  • हृदय रोग के मरीजों को अपने हाथ और पैर को गर्म रखना चाहिए। अगर हाथ-पांव ठंडे रहेंगे तो रक्त का संचार सुचारू रूप से नहीं हो पाएगा। दबाव पड़ने के कारण हार्ट अटैक पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें। इससे वजन भी नहीं बढ़ेगा और जोड़ों में लचीलापन रहेगा।
  • सुबह धूप निकलने पर सैर करने जाएं। लेकिन ऐसी जगह टहलें जहां पर प्रदूषण न हो। टहलने से शरीर में गर्माहट आएगी। साथ ही रक्त का संचार सुचारू रूप से होगा। धूप से विटामिन डी भी मिलता है। यह शरीर की हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  • कमरे को गर्म करने के लिए रूम हीटर का प्रयोग करें।



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