Wednesday 5 September 2012

नाभि स्पंदन से रोग की पहचान


आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में  रोग पहचानने के कई तरीके हैं। नाभि स्पंदन के रोग की पहचान का उल्लेख हमें हमारे आयुर्वेद व प्राकृतिक उपचार चिकित्सा पद्धतियों में मिल जाता है। परंतु इसे दुर्भाग्य ही कहना चाहिए कि हम हमारी अमूल्य धरोहर को न संभाल सके। 

कैसे होती है नाभि स्पंदन से रोगों की पहचान 
यदि नाभि का स्पंदन ऊपर की तरफ चल रहा है यानी छाती की तरफ तो अग्न्याष्य खराब होने लगाता है। इससे फेफड़ों पर गलत प्रभाव होता है। मधुमेह, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों होने लगती है। यदि यह स्पंदन नीचे की तरफ चली जाये जो पतले दस्त होने लगते है। बाई ओ खिसकने से शीतलता की कमी होने लगती हैए सर्दी-जुकामए खांसी, कफजनित रोग जल्दी-जल्दी होते हैं। 

यदि यह ज्यादा दिनों तक रहेगी तो स्थायी रूप से बीमारियाँ घर कर लेती हैं। दाहिनी तरफ हटने पर लीवर खराब होकर मंदाग्नि हो सकती है। पित्ताधिक्य, एसिड, जलन आदि की शिकायतें होने लगती है। इससे सूर्य चक्र निष्प्रभावी हो जाता है। गर्मी-सर्दी का संतुलन शरीर में बिगड़ जाता है। मंदाग्नि, अपच, अफरा, जैसी बीमारियाँ होने लगती है। यदि नाफि पेट पर ऊपर आ जाए यानि रीढ़ के विपरित, तो मोटापा हो जाता है। यदि नाभि नीचे की ओर (रीढ़ की हड्डी की तरफ) चली जाए तो व्यक्ति कुछ भी खाए, वह दुबला होता चला जाएगा। नाभि के खिसकने से मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षमताएं कम हो जाती है। नाभि का पाताल लोक भी कहा गया है। कहते है मृत्यु के बाद भी प्राण नाभि में छः मिनट तक रहते है। यदि नाभि ठीक मध्यमा स्तर के बीच में चलती है तब स्त्रियाँ गर्भधारण योग्य होती है। यदि यही मध्यमा स्तर से खिसकर नीचे रीढ़ की तरफ चली जाए तो स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं कर सकतीं। 

अकसर यदि बिल्कुल नीचे रीढ़ की तरफ चली जाती है तो फैलापियन टयूब नहीं खुलती और इस कारण  स्त्रियाँ गर्भधारण नहीं रह सकतीं। कई बंध्या स्त्रियों  पर प्रयोग कर नाभि का मध्यमा स्तर पर लाया गया। इससे बंध्या स्त्रियाँ भी गर्भधारण योग्य हो गई। कुछ मामलों में उपचार वर्षों से चल रहा था एवं चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि यह गर्भधारण नहीं कर सकती किन्तु नाभि-चिकित्सा के जानकारों ने इलाज किया। उपचार पद्धति आयुर्वेद व प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में पूर्व से ही विद्यमान रही है। नाभि को यथास्थान लाना एक कठिन कार्य है। थोड़ी-सी गड़गड़ी किसी नई बीमारी को जन्म दे सकती है। नाभि-नाडि़योंका संबंध शरीर के आंतरिक अंगों की सूचना प्रणाली से होता है।  

यदि गलत जगह पर खिसक जाए व स्थायी हो जाये तो परिणाम अत्याधिक खराब हो सकता है। इसलिए नाभि नाड़ी को यथास्थान  बैठने के लिए योग्य व जानकार चिकित्सकों का ही सहारा लिया जाना चाहिए। नाभि को यथास्थान लाने के लिए रोगी को रात्रि में कुछ खाने को न दें। सुबह खाला पेट उपचार के लिए जाना चाहिए। क्योंकि खाली पेट ही नाभि नाड़ी की स्थिति का पता लग सकता है।



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