Friday 19 October 2012

मलेरिया की हर तीसरी दवा नकली


आँकड़ों से पता चला है कि पूरी दुनिया में मलेरिया के इलाज के लिए उपयोग में आ रही हर तीसरी दवा ‘नकली’ है.
इतना ही नहीं, शोध से यह भी पता चला है कि यह दवा नुकसानदेह भी है.

दक्षिण पूर्व एशिया के सात देशों में किए गए शोध से पता है कि इन दवाओं की गुणवत्ता बहुत ही खराब है.
पंद्रह सौ लोगों पर किए गए शोध के बाद शोधकर्ताओं ने बताया है कि खराब गुणवत्ता वाली मलेरिया की दवा न सिर्फ अन्य दवाओं के असर को कम कर देती है, बल्कि दूसरे इलाजों पर भी असर डालती है.
अफ्रीकी उप सहारा के अन्य 21 देशों में 2500 लोगों पर किए गए इस सर्वे में भी इसकी पुष्टि हुई है. संक्रमण बीमारियों पर लांसेट का जो शोध है, इसे विशेषज्ञों ने चेतावनी के रूप में देखना शुरू कर दिया है.
भारत-चीन पर शोध नहीं

मलेरिया पर शोध कर रहे अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के फॉगर्टी इंटरनेशनल सेंटर के शोधकर्ताओं का मानना है कि समस्या इतनी ही नहीं है जितनी कि आकड़ों से पता चलता है. हो सकता है कि हालात इससे भी ज्यादा गंभीर हों.
शोधकर्ताओं का कहना है, "ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते हैं या फिर गलत जगह दर्ज करा दिए जाते हैं या दवा बनाने वाली कंपनियां इसे छुपा देती है."
शोधकर्ताओं ने कहा है कि दुनिया की लगभग एक तिहाई आबादी वाले देश भारत या चीन में इस पर गहन शोध नहीं किया गया है.
शोधकर्ताओं के मुताबिक ‘शायद’ इन दोनों देशों में ही सबसे ज्यादा नकली और मलेरिया रोधी दवा बनती हैं.
तीन अरब लोगों पर खतरा

मलेरिया पर हुए शोध के प्रमुख शोधकर्ता गौरविका नायर का कहना है कि पूरी दुनिया के 106 देशों में तकरीबन 3.3 अरब लोगों पर मलेरिया का खतरा मंडरा रहा है.
गौरविका नायर का कहना है, “हर साल छह लाख 55 हजार से 12 लाख लोग प्लाजमोडियम फलसिपारम के संक्रमण से मरते हैं. इनमें से ज्यादातर लोगों को इस बीमारी से और मरने से रोका जा सकता है बशर्ते कि वक्त पर अच्छी दवा, उपयुक्त समय पर मरीजों को उपलब्ध करा दिया जाए.”
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि जो देश मलेरिया से मुक्त है, वहां मलेरिया रोधी दवा का इस्तेमाल कभी डॉक्टरों के सलाह पर और कभी बिना उनके सलाह के धड़ल्ले से किया जा रहा है.
निगरानी में कमी

शोध में यह भी बताया गया है कि मलेरिया रोधी दवा के इस्तेमाल करने के बाद इस पर निगरानी रखने की व्यवस्था नहीं है. इससे गरीब मरीजों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है.
हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का कहना है कि इतना कुछ होने के बाद भी मलेरिया से होनेवाली मौत में पूरी दुनिया में वर्ष 2000 से 25 फीसदी और अफ्रिका के क्षेत्र में 33 फीसदी की कमी आई है.
डब्लूएचओ का मानना है कि अगर इसी रफ्तार से मलेरिया के रोकथाम का कार्यक्रम चलता रहा तो निर्धारित समय में इस बीमारी से निजात नहीं पाई जा सकती है.
डब्लूएचओ का कहना है कि सरकार को इस पर और अधिक ध्यान दिए जाने की जरुरत है. सरकार को इस पर कड़ी नजर रखनी चाहिए जिससे नियत समय पर इससे मुक्ति मिल सके.

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