Tuesday 2 October 2012

B.B.C. KE SAABHAAR

blood sample
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के मुताबिक़ टीबी का पता लगाने के लिए होने वाली ख़ून की जाँच ग़लत है और इस पर पाबंदी लगा देनी चाहिए.
हर साल 20 लाख से ज़्यादा ऐसे टेस्ट होते हैं, लेकिन डब्लूएचओ का कहना है कि इनसे बीमारी का सही पता नहीं चलता और इस कारण लोगों का ग़लत इलाज भी होता है.
संगठन का कहना है कि इस तरह के टेस्ट लोगों की ज़िंदगी ख़तरे में डालते हैं. टीबी का पता लगाने के लिए होने वाली ख़ून की जाँच करोड़ों का व्यवसाय है.
जिन देशों में टीबी का स्तर ज़्यादा है, वहाँ मरीज़ ऐसे एक टेस्ट के लिए 1500 रुपए तक देते हैं. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़ उनका पैसा बेकार जा रहा है.
ऐसे टेस्टिंग किट्स की समीक्षा के बाद संगठन ने दावा किया है कि कम से कम 50 प्रतिशत मामलों में इनकी रिपोर्ट ग़लत होती है.
और तो और ये टेस्ट कई बार टीबी बैक्टीरिया का पता नहीं लगा पाते, जिससे उन लोगों को ये कह दिया जाता है कि उन्हें टीबी है ही नहीं, जबकि उन्हें ये बीमारी होती है.
अनैतिक
इसके उलट कई बार इस जाँच से ऐसे लोगों में भी टीबी होने की बात सामने आ जाती है, जिन्हें दरअसल टीबी होता ही नहीं है. इस कारण ऐसे लोग बिना बीमारी के इलाज करा रहे होते हैं.
डब्लूएचओ का कहना है कि बाज़ार में ऐसे कम से कम 18 टेस्टिंग किट्स हैं. इनमें से ज़्यादातर यूरोप और उत्तरी अमरीका में बनाए जाते हैं. लेकिन कड़े नियमों के कारण इनकी बिक्री वहाँ नहीं होती.
लेकिन विकासशील देशों में ऐसा नहीं है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि ये अनैतिक है. संगठन के डॉक्टर कैरेन वेयर के मुताबिक़ ऐसे टेस्ट लोगों का जीवन ख़तरे में डाल रहे हैं.
डब्लूएचओ ने देशों से अपील की है कि वे इन टेस्टिंग किट्स पर पाबंदी लगाएँ. संगठन का कहना है कि लोगों को अन्य टेस्ट जैसे माइक्रो बॉयोलॉजिकल और मोलेक्यूलर टेस्ट्स पर निर्भर करना चाहिए

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