Wednesday 6 February 2013

फाइलेरिया से बचाव


फाइलेरिया नियंत्रण के लिए उपाय निम्नानुसार हैं; 

  • जो लोग  फाइलेरिया रोग से संक्रमित है उनकी पहचान की जाये और उनके रक्त का उचित उपचार किया जाये ताकि उनसे यह रोग दूसरों को न फैले और।
  • मच्छर रोधी उपाय अपनाये जाएँ ।


राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम; 

  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत  सूक्ष्म कीड़े को मारने की दवाई दी जाती है जिससे कीड़ों के  पूरे समुदाय का खात्मा हो जाये।
  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे मच्छर विरोधी उपायों का उपयोग किया जाता है जिससे कि ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी इलाकों में जो एंटीलार्वल  दवाओं का  साप्ताहिक अंतराल पर छिडकाव किया जा सके।  इन् उपायों में ऐसे कीटनाशक दवाओं का उपयोग शामिल किया गया है जिससे कि  मच्छरों के लार्वा, जैसे टेम्पेफोस , फ़ेन्थिओन इत्यादि को मारा जा सके। ऐसे गड्ढों को भी भरने का इंतजाम है जिससे कि  मच्छर के प्रजनन पर  नियंत्रण पाया जा सके। 
फाइलेरिया को रोकने का एक अन्य प्रमुख उपाय यह है कि  आप मच्छर के काटे जाने से बचें।  क्यूलेक्स मच्छर जिसके कारण फाइलेरिया का संक्रमण फैलता है आम तौर पर शाम और सुबह के वक्त काटता है।  यदि आप किसी ऐसे क्षेत्र में रहते हैं जहां फाइलेरिया फैला हुआ हो तो खुद को मच्छर के काटने से बचाएँ।  मच्छर के काटने से बचने के उपायों में निम्न उपाय शामिल हैं:


  • सुरक्षात्मक कपडे पहने; मसलन आपके पैंट एवं शर्ट ऐसे हो जिनसे आपका पूरा पाँव और बांह ढक जाए।
  • आवश्यकता पड़े तो  पेर्मेथ्रिन युक्त (पेर्मेथ्रिन एक आम सिंथेटिक रासायनिक कीटनाशक होता है) कपड़ों का उपयोग करें।  बाजार में पेर्मेथ्रिन युक्त कपडे मिलते हैं।
  • अगर जरूरत पड़े तो कीट विकर्षक का प्रयोग करें।   डी ई ई टी  नामक कीट विकर्षक तरल पदार्थ, लोशन और स्प्रेज़ के रूप में उपलब्ध रहता है । आपकी  त्वचा का जो खुला हुआ भाग रहता हो उसपर डी ई ई टी  नामक कीट विकर्षक लगायें।  आपको कितनी देर के लिए मच्छरों  से सुरक्षा चाहिए इस बात पर निर्भर करता है  कि आप कीट विकर्षक  डी ई ई टी  कितना गाढ़ा लेते हैं।  ज्यादा गाढ़ा डी ई ई टी   लगायेंगे तो आपको ज्यादा देर तक संरक्षण मिलेगी।
  • अगर आपके घर की खिडकियों में मच्छर रोकने की जाली नहीं लगी हुई हो तो उन्हें बंद रखें ताकि मच्छर अंदर प्रवेश नहीं कर सकें।
  • मच्छरों को मारने के लिए कीट स्प्रे से छिडकाव करें।

फाइलेरिया के कारण


भारत के अधिकांश भागों में फाइलेरिया एक ऐसे परजीवी के कारण होता है जिसे वुचेरेरिया   वानक्रोफ़टी के रूप में जाना जाता है।   इस तरह का संक्रमण भारत के  शहरी और ग्रामीण, दोनों क्षेत्रों में आम बात है। एक व्यक्ति से दूसरे तक यह रोग स्थानांतरित करने में क्यूलेक्स नामक मच्छर  रोगवाहक का काम करता है।  जो वयस्क परजीवी होता है वह छोटे और  अपरिपक्व माइक्रोफिलारे  को जन्म देता है और एक वयस्क परजीवी अपने 4-5 साल के जीवन काल में लाखों माइक्रोफिलारे   लार्वा पैदा करता है। माइक्रोफिलारे  आमतौर पर व्यक्ति के रक्त परिधीय  में रात में प्रसारित होता है।  यह बीमारी एक संक्रमित मच्छर क्यूलेक्स के काटने से फैलता है।  जब कोई क्यूलेक्स मच्छर एक संक्रमित व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति से माइक्रोफिलारे  उस मच्छर के शरीर में प्रवेश कर जाता है।  मच्छर के शरीर में  माइक्रोफिलारे  7-21 दिनों में विकसित होता है।  इसके बाद जब संक्रमित मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति को भी यह रोग लग जाता है। 
एक अन्य परजीवी, जिसके  कारण फाइलेरिया होता है उसे  ब्रूगिया मलाई  कहा जाता है।  यह मानसोनिया  (मानसोनियोडिस) एनूलीफेरा  द्वारा फैलता है।  ब्रूगिया मलाई  का संक्रमण मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पाया जाता है।  डब्ल्यू वानक्रोफ़टी और बी मलाई   दोनों के माइक्रोफिलारे  के संक्रमण की प्रदर्शनी रात की अवधि में हीं अधिकांशतः होती है।

संक्रमित मच्छर के काटने के बाद फाइलेरिया को विकसित होने में आमतौर पर कई महीने या वर्ष लग जाते हैं। जिन  क्षेत्रों में  फाइलेरिया आम बात होती  है उन क्षेत्रों में ज्यादा  समय तक रहने से आपके संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।  लेकिन जो पर्यटक अल्पकाल के लिए किस ऐसे क्षेत्र  का भ्रमण करते हैं जहाँ फाइलेरिया फैला हुआ होता है तो उतने कम समय में उन्हें इस रोग से ग्रसित होने का खतरा बहुत कम होता है।

फाइलेरिया के लक्षण


ज्यादातर लोगों को शुरू में पता हीं नहीं चल पाता है कि  वे लिंफ़ फाइलेरिया के शिकार हो गए हैं। फाइलेरिया कोई जानलेवा बीमारी तो नहीं है लेकिन इसके संक्रमण से लसीका प्रणाली और गुर्दों के स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होने का जोखिम रहता है।  प्रारंभिक चरणों में इस रोग के किसी लक्षण का पता हीं नहीं चलता और समस्याओं की शुरुआत तब  से होती है जब  वयस्क कीड़े मर जाते हैं।  जब इस रोग के शिकार व्यक्ति कि   लसीका प्रणाली क्षतिग्रस्त हो जाती है तब उस व्यक्ति की बाहों, स्तनों, और पैरों में द्रव संगृहीत होने लगता है जिसकी वजह से उन अंगों में सूजन आ जाती है। इस प्रकार की सूजन को  लिम्फेदेमा  कहा जाता है।  पुरुषों में वृषणकोश में सूजन हो सकती है।  इस प्रकार के सूजन को हाईड्रोशील कहा जाता है।  पैर, हाथ, या जननांग के क्षेत्र में सूजन पुरुषों के अपने सामान्य आकार से कई गुणा ज्यादा हो सकता है।

अंगों में सूजन होने से तथा लसीका प्रणाली के क्षतिग्रस्त होने से त्वचा और लसीका प्रणाली में जीवाणु के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।  बार बार  संक्रमण के हमले से रोगी की त्वचा  सख्त और मोटी हो जाती है जिसे  फ़ीलपाँव के रूप में जाना है।  फाइलेरिया के दुर्लभ अभिव्यक्तियों में उष्णकटिबंधीय फुफ्फुसीय एसनोफिला और चाईलुरिया  शामिल हैं। आमतौर पर फाइलेरिया के निदान के लिए जिस विधि का इस्तेमाल किया  जाता है उसमें परजीवी  का प्रत्यक्ष प्रदर्शन (लगभग हमेशा माइक्रोफिलारे  के रूप में) रक्त या त्वचा के नमूनों के ऊपर निर्धारित करना शामिल है।  चूँकि  माइक्रोफिलारे  में आवधिकता होती है इसलिए उसके रोगी के खून  का नमूना आमतौर पर रात में लिया जाता है।  फाइलेरिया के निदान  के अन्य जो परिक्षण  हैं उनमें इम्म्युनोडायग्नोस्टिक  एंटीबॉडी  परीक्षण तथा फाइलेरिया प्रतिजन (सी ऍफ़ ए) परिसंचारी की प्रक्रिया शामिल है। 

भारतीय बोझ

फाइलेरिया भारत के कई भागों में प्रचलित है और एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में माना जाता है।  राष्ट्रीय फाइलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (एन ऍफ़ सी पी) 1955 में इस रोग पर नियंत्रण पाने के उद्देश्य के साथ शुरू किया गया था।
जो  राज्य फाइलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित हैं वे बिहार, केरल, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु हैं। फाइलेरिया के सबसे ज्यादा मामले भारत के बिहार राज्य में पाए जाते हैं (पूरे मामलों का 17% भाग बिहार में होते हैं)।  आंध्र प्रदेश, बिहार, केरल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में भी यह रोग काफी हद तक फैला हुआ है और ये राज्य माइक्रोफिलारे  के वाहक का काम करते हैं तथा भारत में इस रोग के 97%  मामलों का कारण बनते हैं।
भारत में फाइलेरिया का संक्रमण फ़ैलाने का सबसे बड़ा कारण  डब्ल्यू वानक्रोफ़टी माना जाता है। देश में इस बीमारी का लगभग 98% भाग इसी की वजह से होता है जो राष्ट्रीय बोझ की तरह है ।  यह रोग महिलाओं की तुलना में  पुरुषों में अधिक पाया जाता है।
गोवा, लक्षद्वीप, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्य फाइलेरिया से बहुत कम प्रभावित हैं।
550  लाख से भी अधिक लोगों को फाइलेरिया होने का जोखिम है तथा 21 लाख लोगों में फाइलेरिया होने के लक्षण हैं और लगभग 27 लाख लोग फाइलेरिया के संक्रमण में वाहक का काम कर रहे हैं।

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