Monday 11 February 2013

ब्‍लैडर कैंसर क्‍या है

ब्लैडर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि के कारण ब्लैडर का कैंसर होता है।

यह वो गुब्बारेनुमा अंग है जो यूरीन का संग्रह करता है और उसे निष्कासित करता है । ब्लैडर की आंतरिक दीवार नये बने यूरीन के सम्पर्क में आती है और इसे मूत्राशय की ऊपरी परत कहते हैं । यह ट्रांजि़शनल सेल्स/कोशिकाओं द्वारा घिरा होता है जिसे कि यूरोथीलियम कहते हैं । कोशिकाओं की परत के नीचे मांस पेशियों की एक परत होती है जो कि ब्लैडर के सिकुड़ने के साथ यूरीन को निष्कासित करती है जिससे यूरीन यूरेथ्रा नामक ट्यूब से निष्कासित किया जाता है । (एक तरफ ब्लैडर किडनी से यूरेटर नामक ट्यूब से यूरीन प्राप्त करता है)।


मांस पेशियों के ब्लैडर की बाहरी दीवार की परत को सेरोसा कहते हैं जो कि फैटी टिश्‍यू, एडिपोज़ टिश्यूज़ या लिम्फ नोड्स के बहुत पास होता है । ब्लैडर कैंसर ब्लैडर की परत से शुरू होता है । 70 से 80 प्रतिशत ब्लैडर कैंसर के मरीज़ों में कैंसर का पता तभी लग जाता है कि जबकि यह बाहरी सीमित होती है, बाहरी सतह में होती है और ब्लैडर की दीवार की आंतरिक सतह में होती है । कैंसर जब ब्लैडर की बाह्य दीवार में शुरू होता है तो इसे सुपरफीशियल कैंसर कहते हैं और यह असामान्य कोशिकाओं में पृथक धब्बे / आइसोलेटेड पैच की तरह दिखता है । अगर ब्लैडर की आंतरिक दीवार पर उंगलीनुमा निकला हुआ हिस्सा पाया गया तो इसे पैपिलरी ट्रांजिंशनल सेल कैंसर कहते हैं ।

कभी–कभी ट्यूमर का पता तब लगता है जबकि यह गहरे तौर पर ब्लैंडर की आंतरिक दीवार से लेकर लिम्फ नोड्स और दूसरे अंग में फैल चुका होता है ।

ब्‍लैडर कैंसर का एक और प्रकार है जिसे कि कारसिनोमा इन सीटू कहते हैं, जिसका अर्थ है कि यह कैंसर सिर्फ उसी स्थान पर रहता है जहां पर इसकी शुरूआत हुई होती है । हालांकि यह कैंसर ब्लैडर को बहुत गहराई से नहीं प्रभावित करता है लेकिन इसके कुछ लक्षण हैं जैसे यूरीनेशन के दौरान जलन होना । ऐसा भी हो सकता है कि चिकित्सक द्वारा साइटोस्कप से जांच करने के बाद भी यूरोलोजिस्ट इस बीमारी को ना पकड़ पाये । जांच के लिए ब्लैडर की बाह्य दीवार का जो हिस्सा लाल लगे वहां की बायोप्सी करनी होती है ।

इसका पता एक दूसरी जांच से भी लगाया जाता है जिसे कि यूरीन साइटालाजी कहते हैं और इसमें यूरीन की कोशिकाओं की जांच की जाती है । इस जांच में यूरीन का एक नमूना लिया जाता है और माइक्रोस्कोप के अंदर उसकी जांच कर कैंसर की कोशिकाओं का पता लगाया जाता है ।

ब्लैडर कैंसर के तीन प्रकार हैं और सभी में अलग– अलग तरह की कोशिकाएं होती हैं : लगभग 90 प्रतिशत ब्लैरडर के कैंसर ट्रांजि़शनल सेल कार्सिनोमाज़ कहलाते हैं, 6 से 8 प्रतिशत स्क्‍वामस सेल कार्सिनोमा और 2 प्रतिशत एडेनोकार्सिनोमाज़ होते हैं ।


अब तक ब्लैडर कैंसर के कारणों को सिर्फ आंशिक तौर पर ही समझा गया है । ऐसा अनुमान लगाया गया है कि ज्यादातर ट्रांजि़शनल सेल कार्सिनोमाज़ कार्सिनोजन (कैंसर के कारक पदार्थे) के कारण होते हैं जैसे तम्बाकू और वातावरण में मौजूद दूसरे रासायन । धूम्रपान करने वालों में ब्लैडर के कैंसर के होने की सम्भावना सामान्य व्यक्ति से दो से चार गुना अधिक होती है । हालांकि ऐसा भी पाया गया है कि ब्लैडर कैंसर के मरीज़ों में से सिर्फ आधे ही धूम्रपान करने वाले पाये गये हैं । ब्लै‍डर कैंसर औद्योगिक रासायनों के सम्पर्क में आने से भी हो सकता है । यह औद्योगिक कार्सिनोजन हैं एनिलीन डाई, पालीसाइकलिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे (2-नैपथिलामीन ,4- एमाइनोबाइफिनाइल या बेन्जि़डीन) पालीक्लोरीनेटेड बाइफेनाइल या वो रासायन जिनका प्रयोग एल्युमिनियम, रबर, रासायन और चमड़ा उद्योग के निर्माण में होता है और यहां तक कि यह रासायन ड्राइक्लीनर्स द्वारा, चिमनी से निकलनेवाले रासायन, हेयर ड्रेसर द्वारा, पेन्टर द्वारा, कपड़े का काम करने के दौरान और ट्रक चलानेवालों द्वारा भी वातावरण में मुक्त, किया जाता है ।

विकासशील देशों में, एक परजीवी संक्रमण जिसे कि सीज़ोसोमियासिस कहते हैं वो ब्लैडर कैंसर का खतरा बढ़ाता है । वो मरीज़ जिनमें लम्बे  समय से ब्लैडर की पथरी है उनमें ब्लैडर की दीवार पर सूजन और लम्बे समय तक जलन के कारण  कैंसर का खतरा बढ़ जाता है । वो मरीज़ जिनमें पहले कभी ब्लैडर कैंसर हो चुका है उनमें इस बीमारी के दोबारा होने की आशंका होती है । कैंसर की चिकित्सा के बाद आसपास की जगह में या ब्लैडर में या यूरेटर में (वह ट्यूब जो यूरीन को किडनी से ब्लैडर तक ले आता है)...

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