खान-पान आदि में गड़बड़ी,भोजन का पाचन ठीक न होना,समय से शौच,पेशाब न जाना,व रोके रखना आदि कारणों से शरीर के भिन्न-२ हिस्सों में रूकावट होने से भिन्न-२ रोग पैदा हो जातें हैं.रुकावटों के कारण ही किडनी में पथरी बननें लगती है,समय पर ध्यान न देने के कारण ये बढ़ने लगती है,जब तक दर्द नहीं होता हम ध्यान ही नहीं देते,कई बार छोटी पथरी अपने आप ही निकल जाती है.यदि पथरी किडनी में है तो निकलना आसान होता है,यदि युरेटर (किडनी से मूत्राशय को जोड़ने वाली नली)में फंस जाये और साईज बड़ी हो तो ओपरेशन ही सहारा होता है,
यदि छोटी हो तो दवा से निकालने का प्रयास सफल हो जाता है ओपरेशन से डरने वालों को दवा खाना अच्छा लगता है मेरे अनुभव के अनुसार प्रयोग की गयी सफल रेमेडी जनकल्याण हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ, आशा करता हूँ ,आपका कष्ट शीघ्र दूर होगा वरुण की छाल २००ग्राम,पाषाणभेद(पत्थरचट्टा) २०० ग्राम, गोखरू ५० ग्राम,दो लीटर पानी में उबालें पानी आधा रहने पर कपडे से छाने,बोतल में भर लें,इसमें १०० ग्राम शहद, १० ग्राम शुद्ध शिलाजीत,स्वाद के अनुसार गुड मिलाएं. इसे २० ग्राम की मात्रा में सुबह -शाम सेवन करें . यदि दर्द हो तो इन्दर जौँ १०० ग्राम,सफ़ेद निशोथ १०० ग्राम का चूरण बनायें ,१-१ चम्मच की मात्रा में गर्म पानी से लें ,२-३ सप्ताह में ही पथरी घुलकर निकल जाती है,यदि पथरी छोटी सी ही तो पाषाणभेद(पत्थरचट्टा)के ३ पत्ते रोज़ निराहार खाने से भी पथरी निकल जाती है
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